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चूहों से पलती ज़िन्दगी : पिछड़े गाँव की कहानी Chuhon Se Palti Zindagi

चूहों से पलती ज़िन्दगी : पिछड़े गाँव की कहानी Chuhon Se Palti Zindagi

नरम दिल वाले कृपया न पढ़ें
चूहों से पलती ज़िन्दगी
पिछड़े गाँव की कहानी,
आज भी याद है ज़बानी,
हक़ीक़त ऐसी भी होती है,
क्या नई औऱ क्या पुरानी।

हाथों में डंडा लिए, बच्चे भागते रहते,
थोड़े से अन्न पाने को, घर ताकते रहते,
मुखिया के खेत जाकर करना है काम,
मिल जाए जो अन्न, वही खाते रहते।

चावल को डाल पानी में इसे उबाला जाता,
आलू जो मिला कहीं तो उसे डाला जाता,
खेत में घूम-घूम कर, बच्चे पकड़ते चूहा
फिर इन्हीं चूहों को पकाकर खाया जाता।

चाव से खाते ये चूहा, या समझो मजबूरी,
बात है यहाँ आख़िर कुछ तो, जो बनी है दूरी,
पापी पेट की ख़ातिर, चूहा पकड़ कर खाते,
रंग इसका हो काला, सफ़ेद या लगे भूरी।

पैसा, पढ़ाई , अय्याशी सब कुछ छोड़ो,
ऐसे मानव से तुम मुँह तो न मोड़ो।
गर्मी,सर्दी , बारिश में क्या है इनका जीना,
ऐसी कैसी नीति है इस नीति को तोड़ो।

चूहों से पलती है ज़िन्दगी जानते हैं सब।
फिर भी न जाने क्यों नहीं मानते हैं सब।
गाँव में आज भी होता है ऐसा काम,
चेहरा छुपाते क्यों हो पहचानते है सब।
चेहरा छुपाते क्यों हो पहचानते है सब।
नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
मुंबई
Nilofar Farooqui Tauseef
Fb, ig-writernilofar

चूहों से पलती ज़िन्दगी : पिछड़े गाँव की कहानी Chuhon Se Palti Zindagi

चूहों से पलती ज़िन्दगी : पिछड़े गाँव की कहानी Chuhon Se Palti Zindagi

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