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क्रांति पुरुष पंडित राम नंदन मिश्र Kranti Purush Ram Nandan Mishra Biography

महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित राम नंदन मिश्र : भारत के स्वाधीनता संग्राम में अग्रणी भूमिका

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महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित राम नंदन मिश्र जी भारत के स्वाधीनता संग्राम में बहुत ही अग्रणी भूमिका में रहे। क्रांति विद राम नंदन मिश्र जी सिर्फ क्रांतिकारी ही नहीं बल्कि बहुत बड़े विद्वान आदर्शवान समाजसेवी एवं उच्च कोटि के समाज सुधारक भी थे। उनकी छवि समाजवादी व्यक्तित्व के रुप में जाना जाता है।

स्वतंत्रता सेनानी पंडित राम नंदन मिश्र जी का जन्म

उनका जन्म दरभंगा जिले के हायाघाट प्रखंड के पतोर गांव रघुनाथ पुर ड्योढ़ी में राजेंद्र प्रसाद मिश्र जी के सुपुत्र के रूप में 16 जनवरी 1906 ईस्वी में हुआ था। उनका ककहरा वाली यानी शुरुआती पढ़ाई गांव में हीं आरंभ हुआ। बाद में अपने बड़े भाई जानकी रमन मिश्र जी के साथ पटना में मामा बाबू वैधनाथ मिश्र जी के यहां रह कर पढ़ाई लिखाई करने लगे। उनके मामा बिहार के नामी वकील थे, उनके निवास पर बाबू राजेंद्र प्रसाद जी समेत तत्कालीन कांग्रेस के नेताओं का जमावड़ा लगा रहता था। वहां पर गांधी जी का भी आना जाना रहता था। राम नंदन मिश्र गांधी जी के गोद में जाकर बैठ जाया करते थे। ऊंच्च संस्कार उन्हें इन महापुरुषों के सानिध्य में बैठने उठने बतियाने में प्राप्त हो रहा था।

भारतीय स्वाधीनता संग्राम का बीजारोपण

भारतीय स्वाधीनता संग्राम का बीजारोपण उनके हृदय में बालपन में ही हो चुका। उनके बहन की शादी काशी नरेश के यहां हुई थी, आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें बनारस भेजा गया। उन्हें बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए विदेश भेजने की तैयारी भी हो चुकी थी। इसी बीच बनारस में पुनः उनकी मुलाकात गांधी जी से हुई। वे बड़े ही धर्मसंकट में फंसे थे मन में विदेश जाने की दुविधा उन्हें अशांत कर दिया था। गांधी जी से मुलाकात होते हीं वे गांधी से प्रश्न कर बैठे की मुझे विदेश पढ़ने के लिए भेजा जा रहा है, मैं दुविधा में हूं की जाऊं या नहीं जाऊं। गांधी जी ने उन्हें तपाक से कहा मत जाओ पर हमसे चिट्ठी द्वारा संपर्क साधते रहना। फिर क्या था वो एक ही झटके में अपना मन बदल लिया।

गांधी वादी और समाजवादी विचारधारा

गांधी जी का प्रभाव उन पर इतना पड़ा की वे पक्का गांधी वादी हो गए। गांधी वादी और समाजवादी विचारधारा उनके अंतर्मन में घर गई। वे ढृढ इच्छा शक्ति के संकल्पवान दृढ़ निश्चयी व्यतित्व बन गए। इस परिस्थिति में उन्हें घर समाज सबसे बहिष्कृत होना पड़ा। वे पर्दा प्रथा का बहुत ही सख्ती से विरोध किया, जिसकी शुरुआत वे अपने ही घर से पत्नी राज किशोरी जी के सहयोग से किया। वे घर परिवार त्याग कर आजादी के दिवाने हो गए। उन्हें बहुत ही विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। कदम कदम पर परेशानियों से घिरे राम नंदन मिश्र जी कभी भी अपना हिम्मत नहीं हारे।उनके उपर आजादी का नशा इस कदर लग गया था, जो कभी भी किसी भी सुरत में नहीं उतरा। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ वे सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान बहुत ही बढ़ चढ़ कर भाग लिया। जिसमें ब्रिटिश सरकार के सामने सामुहिक रुप से उसका प्रतिरोध करना था जो कि अंग्रेजी सरकार के लिए गैरकानूनी था। मकसद साफ था की किसी भी परिस्थिति में गोरों को झुकाकर अपनी सरजमीं से उसे बाहर खदेड़ना है। जगह जगह अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून का लोग उल्लंघन करने लगे।

भारत छोड़ो आंदोलन स्वदेशी अपनाओ अंग्रेज भगाओ का बिगुल

पंडित राम नंदन मिश्र जी गांधी जी के बहुत ही करीबी मित्र थे। वे 1927 से 1934 तक बिहार कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी रहे। 1930, 1931 में वे जेल में ही रहे। उन्हें 1940 में अंग्रेजों के बहिष्कार एवं अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की मनोदशा में फिर जेल जाना पड़ा। वे भारत छोड़ो आंदोलन में गुप्त क्रांतिकारियों के साथ स्वदेशी अपनाओ अंग्रेज भगाओ का बिगुल फूंक देश में कई जगह अप्रत्यक्ष क्रांतिकारी केन्द्रों को आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए जागृत किया, इसी संदर्भ में मद्रास में क्रांतिकारियों से मिलकर कटक गए, जहां उन्हें 23 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें पहले कटक जेल फिर बेहराम पुर जेल में भेजा गया, जहां से भागने की कोशिश की तो उन्हें हजारीबाग सेंट्रल जेल में भेज दिया गया, जहां क्रांति कारी योगेन्द्र शुक्ल जी जयप्रकाश नारायण जी सुर्य नारायण सिंह जी गुलाबी सोनार जी शालीग्राम सिंह जी पहले से स्वाधीनता संग्राम की दिवानगी लिए मानो अंग्रेजों के लाक्षाग्रह रुपी इस हजारीबाग जेल में पहले से कैद थे जैसे उन्हें पंडित रामनंदन मिश्र जी के रुप में अपने केशव के आने का इंतजार था।

क्रांति पुरुष पंडित राम नंदन मिश्र Kranti Purush Ram Nandan Mishra Biography

वो खास दिन 9 नवंबर 1942 का था जिस दिन हजारीबाग का 17 फिट ऊंचा चहारदीवारी इन क्रांति दूतों के आगे बहुत ही छोटा पड़ गया। उसी दिन अपने साथियों के साथ जेल से भागने में कामयाब हो गए। जिस खुशी राम वृक्ष बेनीपुरी जी हजारीबाग जेल में इनके भागने की खुशी में में अन्य क्रान्तिकारियों के साथ दीपावली मनाया। उनके भागे जाने से अंग्रेजी सरकार की सिर्फ होश हीं नहीं उड़ी बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिल गई। कल सुबह होते हीं जेल परिसर में भूकंप सा मानो आ गया। वे पंजाब क्रांतिकारी के प्रमुख थे जहां उन्हें 22 फरवरी 1943 को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। इस बीच वे जेल में ही रहे उन्हें 1946 में काफी समय के बाद फिर रिहा किया गया। इस बीच वे कितने संगठनों में भी रहे। जिसमें 1949 में सोशलिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल रहे 1949 से 1952 तक हिंद किसान पंचायत बिहार के सदस्य एवं महासचिव भी रहे। उनकी देशभक्ति उनका त्याग उनका समर्पण अतुलनीय है। बाद में वे अध्यात्म जुड़ कर मां काली के अनन्य भक्त बन गए। 1989 में उनका देहावसान हो गया।लोग उन्हें आदर से बाबूजी कहकर संबोधित करते हैं। धन्य हैं वो मां जिसने ऐसे लाल को जन्म दिया।

उदय शंकर चौधरी नादान
कोलहंटा पटोरी दरभंगा बिहार
9934775009

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