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शहरों में होता जनसंख्या विस्फोट | Population Explosion in Cities

शहरों में होता जनसंख्या विस्फोट : भारत की जनसंख्या

भारत की जनसंख्या आज १३९ करोड़ के आस पास हो गयी जो चीन के मुकाबले दूसरे नंबर पर है, और एक मानक आँकड़े के अनुसार पूरे विश्व की जनसंख्या की १७% है जब कि कुछ दशक वर्षों पहले भारत जनसंख्या के आधार पर सातवें नंबर पर था,लेकिन आज दूसरे नंबर में पहुँच गया जिसे हास्यास्पद समझना हमारी भारी भयंकर त्रुटि ही कहलायेगी।

शहर में जनसंख्या का विस्फोट दर प्रतिवर्ष बढता ही क्यों जा रहा

विषय के संदर्भ तक पहुँचने से पहले इस अनुमानित आँकडे को कहना उतना ही जरुरी है जितना विषय गर्भ में झाँकने कीआवश्यकता। ख़ैर, चिंता यह नहीं है कि शहर में जनसंख्या का विस्फोट प्रतिवर्ष दर वृद्धि दर आखिर बढता ही क्यों जा रहा है, बल्कि इसे यूँ चिंताजनक कहना मूलतः उचित होगा जिस कारण भारतीय शहरों व ग्रामीण संसाधनीय क्षेत्रों में बढती जनसंख्या व शहरीकरण के अभ्यास पर लाभकारी पहल मध्यांतर की तरह हो या कुछ ऐसी औपचारिक कार्य द्वारा अंकुश लगे कि जिससे शहर व ग्रामीण दोनो ही स्थानों में समानांतर सामंजस्य भी बना रहे और प्रगतिशील भारत की गति भी सुचारू रहे जनसंख्या वृद्धि की तुलना में। सरल भाषा में शहरीकरण का मूल अर्थ -- शहर का भौगोलिक विकास। 

बढती आबादी ने भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में शहर की अपेक्षा दस गुणा से अधिक क्षति किया

वास्तव में निरंतर बढती आबादी ने भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में शहर की अपेक्षा दस गुणा से अधिक क्षति किया है, और अक्सर किसानों का प्रकृति के साथ झूझना-लडना और हार जाने के कारण मनरेगा जैसी प्रक्रिया भी सरकार की किफायती योजना खडी हुई। इसके बावजूद यदि ग्रामीण अंचलों से पलायन या इस तरह कहिये कि शहरों की ओर झुकाव क्यों है..तो सीधी सी बात है कि गाँव में भी विकास हों और उन्हें भी शहरी योजनाओं के बराबर मान्यता दी जाय। दूसरी ओर शहर अपने में मस्त है देश दुनिया की प्रगति हेतु। जनसंख्या वृद्धि के साथ अत्यानुधिक योजनाओं के तहत उद्योगपतियों की नयी नयी कंपनियाँ, कल-कारखाने, विज्ञान व औषधियों को चुनौती देती संस्थाने आदि भी पाँव पसारते ग्रामीण क्षेत्रों को अपने अधिकारों तहत अतिक्रमण किये जा रही है।

शहरों के साथ साथ गाँव भी अत्यानुधिकी हो

पहले शहर में अपने लोग थे, अब आवश्यक हो गया कि शहरी विकास के लिये निकटवर्ती ग्रामीण अंचलों की सेवा की,चाहे भूमि अधिग्रहण हो या श्रमिक सेवा की। फिर,गाँव की दशा दिशा दोनों ही स्थूल है जलाशय की तरह। ग्राम-जन भी अपने जीवन के मूल और अर्थ या दोंनो खोना नहीं चाहते और सबके साथ सबका विकास भी तभी संभव होगा जब शहरों के साथ साथ गाँव भी अत्यानुधिकी हो। खेती की लिये पर्याप्त सुविधा व किसानों की आय की सुरक्षा देश की संपुट है,इस तथ्य को जानकर भी यदि हम अपनी नेतृत्व क्षमता में त्रुटि कर रहे हैं तो अवश्य ही संभल जाना चाहिये क्यों कि गाँव व शहर एक दूसरे के पूरक हैं, न कि एक दूसरे के प्रति केवल रिफ्यूज़ी, और तो और ऐसे में भक्ति, धर्म, जात-पात आदि की भावनाओं को कभी भी एक सूत में बाँध नहीं सकता मूलतः भारत जैसे विशाल देश में । गाँव के अंचल चाहे शहर में विलय कर शहरी कानून के तहत सींचीये या शहर के हिस्से को गाँव के कस्बे में बाँधकर पंचायत को सौंप दें जनता में स्वधर्म सदा ही कौतुकमय होता है जो स्वतः अकेले ही पहाड़ चीर के मार्ग बना लेती।

हमें एक बात के लिये कमर कस लेना चाहिये कि यदि भारत को चीन-जापान या अमेरिका के बराबर अर्थ और कामयाबी की शिरोम्य अर्जित करनी है तो देश के भीतर राजनीतिक स्तर का पुरजोर सुधार हो और पचासों हजारों राजनीतिक पार्टियों का विलय कर मात्र दो या तीन ही राष्ट्रीय दल का निर्माण हों, ऐसा करना गृह क्लेश को अवश्य ही लगाम कसेगा, ऐसा मेरा मानना है। हर हाल में यह महत्वपूर्ण तथ्य जान लें कि जाति धर्म के आधार पर देश का विकास कभी भी संभव नहीं,यदि ऐसा होता तो आजादी के सात से अधिक दशकों पश्चात भी भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति इतनी दयनीय नहीं होती कि छोटी से छोटी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के उद्देश्य लोग शहर की ओर पलायन कर रहें है और दिन-प्रतिदिन गाँव की सौंदर्यीकरण की संपादन को क्षीण कर रहे हैं। यदि कृषि विज्ञान से संबंधित शालाओं की भरमार कर दी तो क्या फायदा? प्रयोगशाला में भारत की आपूर्ति क्या आप पूरी कर सकते? राज्य भी जिम्मेदार हैं इस विषय पर। एक घटना के अनुसार बंगाल में नैनो कार की कंपनी हेतु सारा गाँव इस तरह नाश हो गया जिससे न कंपनी बस पायी न बीसियों बरस तक के लिये खेती की उपजाऊ मिट्टी। कहने का तात्पर्य यह है कि शहरीकरण आवश्यक है तो गाँव की उत्पादकता भी उतनी ही आवश्यक है। शहरों की भौगोलिक विस्तार से अच्छा गाँव का विस्तार हो। गाँव के वे लोग शहरों में न जांय जो पर्याप्त धन व आय संसाधन से लबालब हों और जो वहीँ(गाँव)के विकास में मददगार हों।

शहरों में होता जनसंख्या विस्फोट | Population Explosion in Cities
रामा श्रीनिवास 'राज'
इसी तरह शहरी पूंजीपतियों को भी चाहियें कि मात्र निजी स्वार्थ के लिये गाँव की ओर नज़र न करें। आज शहरीकरण का अर्थ लोग यही समझ रहे हैं कि शहर में आय अच्छी है, लेकिन सच यही है कि शहरों में बहुत से किताबी कीडों को जमीं पे रेंगते पायेगे, ऐसे में विकास का कोई अर्थ नहीं। इन्हीं उद्देश्यों में आज हमारी सरकार झूझ रही है। यदि एक ऐसी योजना के तहत कृषि भूमि पर भारत के प्रत्येक पढे लिखे ग्रेजुएट नौजवानों को एक या दो वर्ष के लिये कृषक कार्य हेतु प्रेरित करना एक प्रकार गाँव की उत्पादन गति को व क्षमता को विस्तार करना है जिससे शहरीकरण को भी अवकाश मिले हदों तक और इस सेवा बिना वे सरकारी कार्यों के लिये कदाचित योग्य भी न कहलायें, तो स्वतः ही शहरों और गाँवों का विकास अपनी अपनी जगह पूर्ण होगा। और आज नहीं कल हम एक सुनिश्चित तंदुरुस्त प्लाटफार्म पर खडे हो कह सकेंगे कि यह भारत वही है,बस अंदरुनी सजावट ही बदल गयी, और लोग खुद को जापानी, अमेरिकन सा फील करेंगे।
दिन :- शनिवार
दिनांक :- 15/01/2022
विषय :- शहरों में होता जनसंख्या विस्फोट
विधा :- आलेख
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प्रस्तुति...
शहरों में होता जनसंख्या विस्फोट
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©रामा श्रीनिवास 'राज'
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बंगलुरु, कर्नाटक।
मौलिक व अप्रकाशित

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