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पोंगल पर निबंध हिंदी में | Essay On Pongal Festival In Hindi

पोंगल पर निबंध हिंदी में Essay On Pongal Festival In Hindi

परिचय
पोंगल का त्योहार, जिसे थाई पोंगल, मकर संक्रांति और पोंगल के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय राज्यों तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और कर्नाटक के साथ-साथ श्रीलंका और मॉरीशस जैसे अन्य देशों में मनाया जाता है। इसे भारत में कहीं कहीं मकर संक्रांति के रूप में भी जाना जाता है। यह पारंपरिक तमिल कैलेंडर की शुरुआत का दिन है। तमिलों के लिए, यह सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है।

पोंगल शब्द तमिल भाषा का है जिसका अर्थ होता है परिपूर्ण और समृद्ध होना। ऐसी मान्यता है कि इस दिन को घर खुशियों और अन्न धन से भर जाते हैं। पोंगल का पर्व किसानों के लिए उत्सवों का त्यौहार होता है। पोंगल त्यौहार को मुख्यतया दक्षिण भारत के वासियों द्वारा मनाया जाता है। यह विशेष त्यौहार पूरे चार दिनों तक चलता है। चार दिनों तक चलने वाला यह विशेष त्यौहार उन सभी देवताओं को समर्पित है जो कृषि कार्यों से संबंधित हैं।

पोंगल के त्यौहार के दिन जो विशेष प्रसाद भगवान श्री सूर्य देवता को भोग लगाने के लिए बनाया जाता है उसे ही पोंगल कहते हैं इसी कारण से इस त्योहार का नाम पोंगल पड़ा। पोंगल का त्योहार तमिलनाडू में फसल काटने की खुशी और उत्साह में मनाया जाता है। यह किसानों का प्रिय और महत्वपूर्ण त्योहार है। इस त्योहार को जनवरी महीने के मध्य में मनाया जाता है। इस त्योहार को लोग अच्छी फसल होने के उत्सव के रूप में मनाते हैं। इस पर्व के चारों दिनों का अपना अलग-अलग विशेष महत्व होता है।

पोंगल नाम क्यों पड़ा :

पोंगल का त्योहार तमिलनाडू राज्य के प्राचीनतम त्यौहारों में से एक है। खेतों की हरियाली, संपन्नता और समृद्धि को समर्पित पोंगल त्योहार के दिन भगवान सूर्य देव की पूजा अर्चना होती है और भोग भी लगाया जाता है। जिस प्रसाद को भगवान सूर्य को भोग लगाने के लिए बनाया जाता है उसे पोंगल कहते हैं। यही कारण है कि इस त्यौहार का नाम पोंगल पड़ा।

पोंगल का इतिहास :

पोंगल के त्योहार का इतिहास लगभग 200 से 300 वर्ष ईस्वी पूर्व का बताया जाता है। पोंगल को द्रविड़ फसलों के त्यौहार के रूप में भी मनाया जाता है। इस त्योहार का संस्कृत के ग्रंथों और पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। कुछ पौराणिक कहानियां भी पोंगल त्योहार के साथ संबंधित हैं। पोंगल त्योहार से संबंधित दो कहानियां लोकप्रिय हैं।

पोंगल के संबंध में एक पौराणिक कथा में ऐसा उल्लेख मिलता है कि एक बार की बात है भगवान शिवशंकर ने अपने बैल नंदी को स्वर्ग लोक से पृथ्वी लोक पर भेजकर मनुष्यों को एक विशेष संदेश देने के लिए कहा। भगवान शिवशंकर ने कहा की उन्हें हर दिन तेल से स्नान करना होगा और महीने में एक बार ही भोजन करना होगा। लेकिन नंदी बैल ने भगवान शिवशंकर की आज्ञा के विपरीत लोगों को संदेश दे दिया।

भगवान शिव के बैल ने लोगों को संदेश दिया कि उन्हें एक ही दिन तेल से स्नान करना है और हर दिन भोजन करना है। बैल की इस भूल से भगवान शिव अत्यधिक क्रोधित हो गए तथा उन्होंने बैल को श्राप दे दिया। बैल को हमेशा के लिए धरती पर रहने के लिए कैलाश पर्वत से निकल जाने का दंड दिया गया।

बैल को किसानों के साथ मिलकर अधिक अन्न उत्पन्न करने में सहायता करने का आदेश दिया। इस प्रकार से पोंगल त्योहार का यह दिन मवेशियों से संबंधित है। इसी प्रकार से इस दिन की एक और भी पौराणिक कथा है जो भगवान श्रीकृष्ण तथा भगवान इंद्र देव से संबंधित है। जब भगवान श्री कृष्ण बाल्यावस्था में थे तब उन्होंने भगवान इंद्र देव अहंकार को तोड़ने का निर्णय किया इसलिए कि उनका मन अहंकार से भर गया था। देवताओं के राजा थे इसलिए उनमे बहुत अभिमान उत्पन्न हो गया था।

भगवान कृष्ण ने गाँव वासियों को इंद्र की पूजा करने से रोक दिया। इससे भगवान इंद्र अत्यधिक क्रोधित हो गए। उन्होंने बादलों आदेश दिया कि धरती पर जा कर और तीन दिनों तक लगातार पानी बरसाओं। इस बारिश से पूरा मथुरा-वृंदावन में तबाही मच गई थी।

ऐसी स्थिति में लोगों इस संकटों से रक्षा करने हेतु भगवान कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को अपनी नन्ही सी ऊँगली पर उठा लिया। तब जाकर इंद्र को अपने अहंकार और भूल का ज्ञान हुआ। तब इंद्र देव ने भगवान कृष्ण की शक्तियों को स्वीकार किया। भगवन कृष्ण ने विश्वकर्मा भगवान से द्वारका को दुबारा से बसाने के हेतु कहा और ग्वालों ने अपनी-अपनी गायों के साथ फिर से खेती-बाड़ी करनी शुरू की थी।

पोंगल फसल महोत्सव Pongal Harvest Festival

पोंगल फसलों का महोत्सव होता है यह जनवरी महीने के मध्य में मनाया जाता है। यह तमिलनाडू राज्य के लोगों का महत्वपूर्ण त्योहार है। इसके पश्चात लोग अपने-अपने कृषि कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं। स्त्रीयों पुरुषों और बच्चों के साथ मिलकर खेतों में फसल लगाने खेतों आती हैं।

पका हुआ चावल भगवान को समर्पित किया जाता है इसे रसोईघर में पका सकते हैं आंगन में या किसी खुले स्थानों पर भी पकाया जा सकता है भगवान यह देखना चाहते हैं कि उनके प्रति लोगों में कितनी आस्था है। जिस क्षेत्र में भी धान होता है वह क्षेत्र ऐसे लगता है जैसे चारों ओर हरे समुद्र की लहरें चल रही हैं। यह सब देखकर किसान का मन ख़ुशी और उत्साह से भर जाता है। इस प्रकार का दृश्य तमिलनाडू के किसानों को उत्साह से भर देता है।

पोंगल कैसे मनाते हैं

पोंगल का त्योहार चार दिनों तक चलता है।
पोंगल तमिल भाषा का शब्द है इसका अर्थ है उबलना। इस त्योहार को जनवरी से फरवरी के मध्य में उत्साहपूर्वक आयोजित किया जाता है। इस मौसम में कई तरह के अनाजों को उत्पन्न किया जाता है जैसे – चावल, मकई, जौ, गन्ना, धनिया, हल्दी, मेरी वगैरह लेकिन इसके अतिरिक्त तमिलनाडू में भोजन पदार्थ के रूप में अनिवार्य होने वाली फसलों को काटी जाती हैं।

पोंगल कब तक मनाया जाता है?

पोंगल भारत के तमिलनाडु में मनाया जाने वाला चार दिवसीय त्योहार है। त्योहार को चावल की फसल और वर्ष की शुरुआत के जश्न के रूप में मनाता है। पहले दिन को भोगी पोंगल, दूसरे दिन को संक्रांति, तीसरे दिन मट्टू पोंगल और चौथे दिन को कानुम पोंगल के नाम से जाना जाता है।

पोंगल कब मनाया जाता है

तमिल संस्कृति के कैलेंडर के अनुसार पोंगल के त्योहार के लिए जनवरी महीने के मध्य का समय सबसे महत्वपूर्ण होता है। तमिलनाडू राज्य के इस त्यौहार को 14 से 15 जनवरी को मनाया जाता है। यह विशेष त्योहार बदलते ऋतु के साथ मानव जाति को ठीक से संतुलित करने का त्योहार है। परम्परागत रूप से इस महीने में शादियाँ अधिक होती हैं। यह परम्परा किसानों के लिए कृषि कार्यों के लिए होती है जो कृषि से संबंध रखते हैं।

पोंगल के प्रत्येक दिन क्या होता है? पोंगल से जुड़ी सबसे बड़ी घटनाएँ क्या हैं?

चार दिवसीय पोंगल त्योहार भारत में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह फसल के मौसम का जश्न मनाता है और परिवारों के लिए एक साथ आने और खुशी मनाने का समय है। त्योहार के पहले दिन को भोगी पोंगल के रूप में जाना जाता है, और यह उत्सव और अनुष्ठानों का दिन होता है। दूसरे दिन को संक्रांति कहा जाता है, और यह त्योहार का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। यह खुशी के दिन के रूप में मनाया जाता है और इसे एक शुभ दिन माना जाता है। तीसरे दिन को मट्टू पोंगल कहा जाता है, और यह गायों को समर्पित होता है। चौथे और अंतिम दिन को कृतिकाई के नाम से जाना जाता है, और इसे पूर्णिमा के दिन के रूप में मनाया जाता है।

पोंगल का पहला दिन : पोंगल का पहला दिन भोगी पोंगल होता है। इस दिन लोग अपने घरों में मिट्टी के बर्तनों पर कुमकुम और स्वस्तिक लगाते हैं। इस दिन घर के कोने-कोने में साफ-सफाई की जाती है। पोंगल त्योहार के पहले दिन भगवान इंद्र की पूजा की जाती है क्योंकि भगवान इंद्र को बादलों का राजा कहते हैं और वो ही वर्षा करते हैं।

अगर अच्छी फसल चाहिए तो बारिस का होना बहुत ही जरूरी है। फसल की प्रचुरता के लिए भगवान इंद्र को रिझाया जाता है। इस दिन एक अनुष्ठान और मनाया जाता है जिसे भोगी मंतालू भी कहते हैं। अच्छी फसल होने से किसान खुशी के साथ भगवान इंद्र जी की आराधना करते हैं और उनको धन्यवाद देते हैं।

भगवान से अपने ऊपर आशीर्वाद को बनाए रखने के लिए कहते हैं जिससे उनके घर और देश में धन और सुख की समृद्धि बनी रहे। इस दिन घर के बेकार सामान को गाय के उपलों और लकड़ी से जला दिया जाता है। इस आग के चारों ओर लड़कियां नाचती हैं और भगवान के लिए गीत गाती हैं।

पोंगल का दूसरा दिन : पोंगल का दूसरा दिन सूर्य पोंगल होता है। सूर्य पोंगल वाले दिन घर का जो सबसे बड़ा सदस्य होता है वो सूर्य देव के भोग के लिए पोंगल बनाता है। इस दिन पूजा या कृत्रिम पूजा का काम तब किया जाता है जब पोंगल को अन्य दैवीय वस्तुओं के साथ सूर्य देव को अर्पण किया जाता है।

पोंगल को मिट्टी से बने बर्तन में चावल और पानी डालकर बनाया जाता है। इस तरीके से जो चावल पकाए जाते हैं उन्हें ही पोंगल कहते हैं। सूर्य पोंगल के दिन लोग पारंपरिक पोषक और चिन्हों को पहनते हैं। सूर्य पोंगल के दिन लोगों द्वारा कोलाम बनाया जाता है यह एक शुभ चिन्ह होता है।

कोलाम को सुबह-सुबह नहा धोकर घर में सफेद चूने के पाउडर से बनाया जाता है।इस तरह से जो चावल पकते हैं उनसे भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। सूर्य भगवान से हमेशा अपने ऊपर कृपा बनाए रखने के लिए प्रार्थना की जाती है।

इस दिन एक रोचक अनुष्ठान भी किया जाता है जहाँ पर पति और पत्नी पूजा के बर्तनों को आपस में बाँट लेते हैं। गाँवों में पोंगल त्यौहार उसी भक्ति के साथ मनाया जाता है। अनुष्ठान के अनुसार हल्दी के पौधे को उस बर्तन के चारों ओर बांधा जाता है जिसमें चावलों को उबाला जाता है।

पोंगल का तीसरा दिन : पोंगल का तीसरा दिन मट्टू पोंगल होता है। मट्टू पोंगल वाले दिन गाय की विशेष पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन गाय को सजाया जाता है गाय के गले में घंटियाँ बांधी जाती है और फूलों की माला बांधी जाती है उसके बाद गाय की पूजा की जाती है।

मवेशियों की घंटियों की आवाज ग्रामीणों को आकर्षित करती हैं और लोग अपने मवेशियों को आपस में दौडाते हैं। किसान के लिए गाय को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। गाय ही किसान को दूध और खाद देती है। इस दिन गाय को पोंगल खिलाया जाता है और गाय के अलावा और पशुओं का भी आदर सत्कार किया जाता है।

क्योंकि पशु किसान का हर पल साथ देते हैं। पशु किसान की फसल की सिंचाई से लेकर फसक की कटाई तक मदद करते हैं। पशु किसान के सुख-दुःख में उसका साथ देते हैं इसी वजह से हिन्दू धर्म में भी पशुओं को पूजा जाता है। मट्टू पोंगल के दिन गांवों में हर किसान अपने गाय बैलों को पूजता है।

मट्टू पोंगल के दिन का एक और महत्व होता है। इस दिन सभी औरतें अपने भाइयों के अच्छे जीवन की कामना करता है। इस दिन घरों में स्वादिष्ट मिठाईयां बनाई जाती हैं और भेट के रूप में दी जाती हैं।

पोंगल का चौथा दिन : पोंगल का चौथा दिन कानुम पोंगल होता है। इस दिन सभी लोग और सदस्य एक साथ रहते हैं और एक साथ खाना खाते हैं। इस दिन हल्दी के पत्ते को धोकर इसमें खाना परोसा जाता और इस पर खासकर मिठाई, चावल , गन्ना , सुपारी परोसे जाते हैं।

इस दिन लोग अपने से बड़े लोगों का आशीर्वाद लेते हैं और अपने से छोटों को प्यार और उपहार देते हैं । इस दिन को बहुत ही ख़ुशी के साथ मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपने भाइयों की चूना पत्थर और तेल के साथ आरती करती हैं और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हैं।

पोंगल के आकर्षण : पोंगल त्योहार को दक्षिण भारत में बहुत जोर-शोर से मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों को सजाते हैं। इस दिन बैलों की लड़ाई का आयोजन किया जाता हौ जो काफी प्रसिद्ध होता है।

रात के समय लोग सामूहिक भोजन का आयोजन करते हैं और एक-दूसरे को मंगलमय वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ देते हैं। इस दिन लोग फसल और जीवन में रोशनी के लिए भगवान सूर्य के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

पोंगल का क्या महत्व है?

पोंगल एक फसल उत्सव है जो भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में मनाया जाता है। त्योहार हर साल जनवरी में आयोजित किया जाता है और चार दिनों तक चलता है। त्योहार के पहले दिन लोग मंदिर में पूजा-अर्चना करने जाते हैं। दूसरे दिन को मट्टू पोंगल कहा जाता है और इस दिन गायों को सजाया जाता है और पूजा की जाती है। तीसरे दिन को कानुम पोंगल के नाम से जाना जाता है और इस दिन लोग अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने जाते हैं। चौथे दिन को सूर्य पोंगल कहा जाता है और इस दिन लोग सूर्य देव को उनके आशीर्वाद के लिए धन्यवाद देते हैं।

भारतीय इस त्योहार को क्यों संजोते हैं?

पोंगल का त्योहार पूरे भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाला यह उत्सव भरपूर फसल के लिए सूर्य भगवान को धन्यवाद देने के लिए समर्पित है। किसान अपनी फसलों को आशीर्वाद देने के लिए एक विशेष अनुष्ठान करते हैं, और सभी क्षेत्रों के लोग उत्सव में भाग लेने के लिए एक साथ आते हैं। त्योहार का मुख्य आकर्षण भोजन है, जो आम तौर पर बहुत विस्तृत होता है और इसमें मीठे पोंगल, मुरुक्कू, वड़ा और पायसम जैसे व्यंजन शामिल होते हैं। परिवार इन पारंपरिक व्यंजनों को साझा करने और फसल की सफलता का जश्न मनाने के लिए एक साथ आते हैं। पोंगल आनंद और खुशी का समय है, और यह एक ऐसा त्योहार है जिसे सभी भारतीयों द्वारा पोषित किया जाता है।

फसल उत्सव कैसे मनाएं

यदि आप पोंगल के बारे में अधिक जानने में रुचि रखते हैं, तो कुछ चीजें हैं जो आप फसल उत्सव मनाने के लिए कर सकते हैं। पहला है पोंगल के इतिहास और अर्थ के बारे में खुद को शिक्षित करना। इससे आपको छुट्टी और इसके महत्व को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी। आप कुछ पारंपरिक व्यंजन बनाने का भी प्रयास कर सकते हैं जो त्योहार से जुड़े हैं। अंत में, आप पोंगल समारोह में भाग लेकर या आयोजन करके अपने स्थानीय समुदाय में शामिल हो सकते हैं।

पोंगल पर निबंध हिंदी में | Essay On Pongal Festival In Hindi

निष्कर्ष:
पोंगल, दक्षिण भारत का एक फसल त्योहार हिंदुओं द्वारा सूर्य को धन्यवाद देने और एक नए साल की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है। दुनिया के इस हिस्से में रहने वाले लोगों के लिए पोंगल अपने साथ कई रिवाज लेकर आता है।

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