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याद है मुझे बचपन का कुछ कुछ अपना : डॉ. कवि कुमार निर्मल की कविता पिंड दान

याद है मुझे बचपन का कुछ कुछ अपना : डॉ. कवि कुमार निर्मल की कविता पिंड दान

याद है मुझे बचपन का कुछ कुछ अपना : डॉ. कवि कुमार निर्मल की कविता पिंड दान


"पिंड दान"

याद है मुझे बचपन का कुछ कुछ अपना।
लगता हैं अब वह प्यारा प्यारा सपना।।

थाली से आँख बचा थाली में रोटी रखना।
लम्बी कहानी यह, नित देना मीठा सपना।।

बाबु जी से मेरे लिए रोज शाम में माँ का लड़ना भिड़ना।
बाबु जी का सिगरेट छोड़ बीडी के बण्डल से काम चलाना।।

उस पैसे से मेरी टयूसन की फीसें चुकाना।
अपना हुनर मुझ तक भरसक पहुँचाना।।

नहीं भुला हूँ मैं उनका जब तब लाड़ लड़ाना।
मेरे लिए मोहल्ले-टोले से उनका लड़ जाना।।

नसें भींगी तो बहुरिया की दोनों का आश लगाना।
चट मंगनी पट व्याह धूम-धाम से शादी रचना।।

माँ के संग था पहले सोना-खाना-पीना।
छुट गया सब अब तुमसे क्या (?) छुपाना।।

नई-नवेली के संग बिस्तर पर नित रास रसाना।
एक दो कर पाँच बच्चों का आ- वँश चलाना।।

उफ़! शुरू हो गया जल्द दो बर्तन का बजना।
इससे उसकी कह, कोप भवन में जब-तब धरना।।

स्कूल-कालेज का बहुत भरी हुआ था पड़ना।
हो गया पट्ठा गबरू- जवान, डाक्टर अपना।।

टकसाल बनाया पैसों से झोली भरेगी।
दबी हुई सारी आस अब पुरण होगी।।

बैल बन रोज का कोल्हू में लगना।
पैसों में अपना कुछ बचा कर रखना।।

नहीं हुआ था अपना खतना।
रोज-रोज का खट-पट, लड़ना।।

माँ बहु ने चूल्हा अपना अलग अलग जलाया।
कभी-कभी मुझे बातों में भरमा चुप कराया।।

हद्द होनी थी, हो हीं गई रे भईया।
बीबी संग निकले घर से सईंया।।

अपना दरबा अलग बस चमक गया।
नून-तेल-लकड़ी का अपना रोग नया।।

वृद्ध हुए जब बाबू जी और माई।
बच्चों से आने की गुहार लगाई।।

छोड़-छाड़ तब लौटे हम भाई।
माँ के कमरे में खाट बिछाई।।

बीबी की कौन करेगा भरपाई।
मइके से जब बीबी लौट आई।।

ख़ूब मुझे वह समझाई,
मरणासन्न हुए पिता हमारे।
देव-देवता को हम बहुत पुकारे।।

ह्रदय आधात था हुआ, जाना हीं था।
पिता बिन रहना, बिधना का लेख था।।

माँ फिसली, हड्डी कुल्हे की टूटी।
एक साल चारपाई पर हीं बीती।।

इक्कावन की हुई अभी वह।
पाँच-दस और जियेगी वह।।

भईया मेरे तुझसे है यह मेरा कहना।
सेवा करना मात-पिता की, पँखा छलना।।

होठ सुख जाएँ तो ठंडा जल देना।
माँ के दूध का कर्ज कुछ उतार देना।।

देख तुम्हारे बच्चों का ह्रदय पुलकित होगा।
आशीष मिलेगा, सारा सपना पूरा होगा।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल

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