बज्जिका कविता : हम भेली सत्तर से ऊपर बहत्तर के Bajjika Kavita
परम पिता परमेश्वर की असीम एवं अहैतुकी कृपा प्रसाद से आखिर आज मैंने अपने जीवन की बहत्तर सीढ़ियाँ निर्विघ्न चढ़ने में सफल हुआ। सर्व नियंता विभु को मेरा शतधा नमन, वंदन और अभिनंदन है, जिसने मुझे पग -पग पर उत्साहित और ऊर्जस्वित किया है। साथ ही सभी गुरुजन, प्रियजन, पुरजन एवं परिजन का मैं हृदय से आभारी हूँ जिनकी सदाशयता ने मुझे हर समय संबल प्रदान किया है। अतः मैं सादर विनयावनत हो आप सभी को वंदन और नमन करता हूँ तथा ऐसी ही शुभेच्छा की सतत कामना रखता हूँ।
(इस सुअवसर पर सादर भेंट है मेरी एक बज्जिका कविता )
हम भेली सत्तर से ऊपर बहत्तर के— बज्जिका कविता
हम लगइत हती गोर
कर जोड़ के,
आई हम भेली
सत्तर से ऊपर बहत्तर के।
महीना रहे पूस
रितु हेमंत रहे
सर्दी से व्याकुल
सगरे दिगंत रहे
घुरा तर के आग
ई बड़का जड़ंत रहे
धधकइत न रहे
ई जान - बूझ के।
आई हम भेली
सत्तर से ऊपर बहत्तर के।
कोठी, बखारी सबे
अन्न से भरल रहे
अँगना से आकाश तक
मोती जड़ल रहे
वसुधा हमर दुल्हिन
सन सजल रहे
देखली एकर रूप हम
जीऊ भर के।
आई हम भेली
सत्तर से ऊपर बहत्तर के।
नदी, पोखरी सबे
पानी से भरल रहे
ओई में कुमुदिनी,
कमल हँसइत रहे
आउर ओई में भौंरा
अगराएल घूमइत रहे
देखली सबे खेल
ओई रसिया के
जे, जे कएलक
ऊ मन बसिया से
अब कहु कतेक बात
हम आहाँ सबे के
बस अब फेनु
लगइत हती गोर
हम कर जोड़ के।
आई हम भेली
सत्तर से दूगो ऊपर बहत्तर के।
- विनयावनत
उदय नारायण सिंह
मुजफ्फरपुर, बिहार
6200154322
तिथि -18 -12 -2021
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