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छठ पूजा के मौक़े पर एक विचित्र कविता | A Strange Poem On The Occasion of Chhath Puja

छठ पूजा के मौक़े पर एक विचित्र कविता | A Strange Poem On The Occasion of Chhath Puja

छठ के मौक़े पर एक विचित्र कविता
चाँद के इश्क में जल रहा है सूरज
दर्द-व-अलम को निगल रहा है सूरज !?
क़ैस/ मजनूँ के इश्क़ में जल रही है लैला !?
रन्ज-व-मुह़न को निगल रही है लैला !?
सारी दुनिया करे है पुजारी सूरज की !!
और मुसलमाँ को चिन्ता है सज-धज की !?
चाँद के फेरे में आ गये हैं मुसलमाँ !?
आपस ही में क्यों लड़िई करते हैं मुसलमाँ !?!
ईद, बक़रीद, मुहर्रम के चाँद को ले कर !!
मुसलिमों में हुआ करता है तनाज़ा अकसर !?
हिन्दुओं के यहाँ ये बात नहीं होती है !!
हर दिन सूरज देवता की पूजा की जाती है !!
चाँद मोहताज है सूरज देवता का !!
सूरज मोहताज नहीं है चन्द्रमा का !!
जो लोग, सूरज के अनुसार चलते हैं !!
वे, जग में हमेशा कामयाब होते हैं !!
इक दिन काफिर भी चाँद का दीवाना हो जायेगा !!
उस दिन हिंदू मुसलिम में भाईचारा हो जायेगा !!
सूरज देवता," छठ मैया " से भी करता है प्यार !!
" छठ-मैया " भी " सूरज-देवता " को बहुत चाहती है !!
आओ !, यारो !, हम-सब, " छठ-मैया " से प्यार करें !!
दुनिया के गोशे- गोशे को हम-सब, गुलज़ार करें !!
कवि :- रामदास प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी,
छठ पूजा के मौक़े पर एक विचित्र कविता | A Strange Poem On The Occasion of Chhath Puja
द्वारा,डॉक्टर जावेदअशरफ़ कैस फैज अकबराबादी मंजिल, डॉक्टर खदीजा नरसिंग होम , राँची हिल साईड, इमामबाड़ा रोड , राँची - 834001, झारखण्ड,इन्डिया

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