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बढ़ते हुए भ्रष्टाचार गिरते हुए आचरण पर कविता : सुधीर सिंह

भ्रष्टाचार और गिरते हुए चरित्र पर कविता | Poem on Corruption And Falling Character

अँघेरों का बसर जीते कैसे यहाँ इंसान
होंठ रक्त पिपासा मुठ्ठी में यहाँ इंसान
न कोई दिशा ना अपनी कोई पहचान
ये कैसा देश है मेरा कैसे भारत महान।।

आईने चटख रहे देख अपनी सूरत
झाँक लेते कभी बन कर वो मूरत
हादसे रोज यहाँ रंग बदलते ईमान
ये कैसा देश है मेरा कैसे भारत महान।।

सत्य अहिंसा धूमिल हो गये गाँधी
भ्रष्ट आचरण फैला बन कर आँधी
रुप बदल अपनी चुप रहती जुबान
ये कैसा देश है मेरा कैसे भारत महान।।

दँगा फसाद है हर रोज का आलम
अखबारों का शान रोज का कॉलम
जिश्म बेच देश का मौज करे शैतान
ये कैसा देश है मेरा कैसे भारत महान।।

मेरा देश कराह रहा कहाँ हैं भगवान
रक्तपथ हो रहा यहाँ सो गये है इंसान
ऊँच निच बाँट कर कोंख मे लेते जान
ये कैसा देश हैं मेरा कैसे भारत महान।।

जिस्मफरोशी धंधे खोल रहे हैं दुकान
अपने घर के लाज बेच रहे हैं हैवान
सत्य बेअसर हैं झुठे की बढ़ गई शान
ये कैसा देश हैं मेरा कैसे भारत महान।।
सुधीर सिंह आसनसोल

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