Ticker

6/recent/ticker-posts

हरजीत सिंह मेहरा की कविताएं : जादू की झप्पी | मुझे आक्रोश है Jadoo Ki Jhappi

हरजीत सिंह मेहरा की कविताएं : जादू की झप्पी | मुझे आक्रोश है Jadoo Ki Jhappi

जादू की झप्पी
"जादू की झप्पी"देके तो देखो
उस नाबालिक बालक के हाथ.. जब,
होटल के मेज़ ... साफ करते हैं,
उस की ... बेबसी के बोझ तले,
ना जाने कितने सपने..रोज़ मरते हैं!
कभी," हमदर्द " बन के आगे बढ़ो,
स्नेह भरा हाथ सर पर, फेर के तो देखो,,
खुशी से आंखें ... छलक जाएंगी,
कभी, उन्हें अपने आगोश में लेके तो देखो।
चेहरे पर... मुस्कान छा जाएगी,
एक बार उन्हें... टटोल के तो देखो,
उम्मीदों के दीप जल उठेंगे..नैनों में,
बस एक बार " जादू की झप्पी " देके तो देखो!

उस रास रचईया की..बात है निराली,
जग के सारे काम को माकूल किया,
पर, देके...उन मासूमों को जिंदगी,
आंखों को रोशन करना..भूल गया!
कभी, उन "नेत्रहीन मासूमों" के जीवन में,
"रोशन-ए-चिराग" बन के तो देखो..
उन की वीरान ... सूनी आंखों में,
खुशियों के हसीन रंग..भर के तो देखो!
इंद्रधनुषी, नवरंग खिल उठेंगे उनमें,
उनके नेत्रों की आभा..बनके तो देखो,
बसा लेंगे तुम्हें वो..अपने दिल में,
बस एक "जादू की झप्पी" देके तो देखो!

सर पे बोझ उठाया है,आंखों पे ऐनक है,
जर्जर बदन है, चलते हुए कदम लड़खड़ाते हैं,
सारी उम्र, हड्डियां गलादि,उनकी परवरिश में,
वो ऊंचे महलों में और बापू मज़दूरी करते हैं!
कभी "दर्दमंद" बनके उनके हाथों को थामो,
रुमाल से उनका पसीना..सुखा के तो देखो,
कांपते होठों से वे चूम लेंगे तुम्हारा मस्तक,
कभी उनके दिल के दर्द..छेड़ के तो देखो!
बन जाओ उनके जख्मों का.. मरहम,
कभी उनके पाक चरणों में..बैठ के तो देखो,
अमर कर देंगे तुम्हें वे दुआओं से अपनी,
बस एक बार "जादू की झप्पी" देके तो देखो!!
हरजीत सिंह मेहरा
लुधियाना, पंजाब।
85289-96698


Harjeet Singh Mehra Ludhiana Punjab

मुझे आक्रोश है आज के असभ्य समाज को देखकर: समाजिक बुराई पर कविता

मुझे आक्रोश है..
आज के असभ्य समाज को देखकर,
मन में तीव्र आक्रोश भर जाता है,
पर, खुद को असहाय पा कर.. जोश,
नि:शब्द, खामोश हो कर रह जाता है।

मुझे आक्रोश है उन बच्चों पर जो,
मां-बाप के सहारे, कामयाबीयां पाते हैं,
और उनके समर्पण को भूल, एक दिन..
उन्हें अपमानित कर वृद्ध आश्रम छोड़ आते हैं।

मुझे आक्रोशे उन लोगों पर,जो,
स्वाधीनता और गणतंत्र पर, तिरंगा फहराते हैं,
और दिवस बीत जाते ही..तिरंगे को,
सड़क पर फेंक.. पांव तले रौंदवाते हैं।

मुझे आक्रोश है उन रिश्तों पर जो,
रिश्तों को दौलत के तराजू में तोलते हैं,
जो, अपनेपन का ढोंग रचाते हैं, और,
मौक़ा पाते ही पीठ में छुरा घोंपते हैं।

मुझे आक्रोश है, उन बुद्धिजीवियों पर,
जो, बराबरी और समानता की बातें करते हैं,
और आज भी अपने बाहुबल के ज़ोर पे,
दलितों में भेदभाव, छुआछूत का दंभ रखते हैं।

मुझे आक्रोश है उन कापुरुषों पर,
जो, नारी के सम्मान की बातें करते हैं,
और रात की काली चादर के पीछे जो,
नारी को खिलौना समझ,चीर हरण करते हैं।

मुझे आक्रोश है उन पर राजनीतिज्ञों पर,
जो, राष्ट्र सेवा की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं,
और जनता के जज़्बात और मजबूरियों का,
सरेआम सामाजिक व्यापार करते हैं।

निर्लज्ज, निर्दई,मतलबी ये दुनिया देख,
हताश, बेबस, मजबूर हो कर रह जाते हैं,
आक्रोश की ज्वाला दिल में दबा कर,
खून का कड़वा घूंट पीकर, रह जाते हैं।।
हरजीत सिंह मेहरा
लुधियाना, पंजाब।
85289-96698


तेरा ग़म भुलाने को

पूछा मुझे साकी ने..तुम पीते क्यों हो,
इस क़दर नशे में..तुम जीते क्यों हो!
क्या ग़म छुपा रखा है..सीने में अपने..
शराब की ख़ुमारी में..हरदम रहते क्यों हो!

उनकी जुदाई के ग़म में..पी रहे हैं,
उनको याद करके..हम जी रहे हैं।
कौन कहता है के, हर दुआ कबूल होती है,
फ़नां होते हैं जो, फ़रियाद उनकी मकबूल होती है।

पहली मुलाक़ात को भूल जाऊं..पी रहा हूं,
उनकी यादों को भूल जाऊं..पी रहा हूं,
वादा किया था उसने, शरीक ए हयात का..
उस वादे को भूल जाऊं..पी रहा हूं!

ना छेड़ दिल के दर्द, साकी..भर दे पैमाना..
बड़ा ही ज़ालिम है दोस्त..ये बेरहम ज़माना!
दिखा दिए हसीन ख़्वाब..उस बेगैरत ने..
अब इतराती है गैरों में..बनके नाज़नीना!

उस बेदर्द को भूल जाऊं..इसलिए पीता हूं..
फनां कर दूं खुद को..ख़ुमारी में रहता हूं..
पर, ख़ुमारी में भी..वो याद आती है..
तो, ग़म भुलाने तेरे पास..आ जाता हूं!!
हरजीत सिंह मेहरा
लुधियाना पंजाब।
85289-96698


चाह नहीं..पुनर्जन्म की
चाहत नहीं है पुनर्जन्म की..ए खुदा..
आदमजात की रूह..फिर नहीं चाहता,
जल रहा हूं जिस..दोजख़ की आग में..
फिर दोबारा इसमें, जलना नहीं चाहता!
इल्तिज़ा है तुझसे..मेरे रहबर..
मेरी यह दुआ आप..कबूल फ़रमाना,
भेज भले ही देना..इस काय़नात में..
पर, मुझे ज़िंदगी..इंसान की ना देना!

अगर ज़िद्द है तेरी..फिर जीवन देने की..
तो, मेरी फ़रियाद..मेरे मालिक सुन लेना,
भले चार दिनों की देना..सांसे मुझे..
किसी गुलिस्तां का..फूल बना देना!
झूम लूंगा मस्ती में.. फिज़ा के संग..
खुशी के गीत, भमरों के संग.. गुनगुना लूंगा,
अपनी ख़ुशबू छोड़ जाऊंगा..चमन में..
जिंदगानी अपनी..सार्थक बना लूंगा!

गर, जिंद देनी हो..एक मौसम की..
तो स़ज़दे करम में..इनायत करना..
पंछी के जीवन की..दात दे कर..
नाज़ुक से दिल की..नवाज़िश करना!
बड़ी संजीदा है..जिंदगी सब की..
गमों को सब के.. सहला दूंगा, 
सुना के मधुर गीत अपने कंठ से..
सब के दिलों को.. बहला दूंगा.!!

हो मंज़ूर अगर ख्वाहिशें मेरी..
बेशक ज़िंदगी देकर..ममनून बना देना,
वरना, चाह नहीं है पुनर्जन्म कि मुझे..
मेरी रूह..अपने कदमों में बसा लेना!!
शब्दार्थ
1-दोजख़ - नरक
2-इल्तिजा - प्रार्थना
3-फिजां - हवा, प्रकृति
4-सजदे करम - नतमस्तक
5-इनायत - कृपा
6-नवाज़िश - कृपा, मेहरबानी
7-ममनून - आभारी
हरजीत सिंह मेहरा
लुधियाना पंजाब।
85289-96698


जटिल हो गई है जिंदगी
बड़ी जटिल हो गई है जिंदगी,
ख्वाबों में सिमट गए हैं अरमान,
जरूरतें पूरी करते-करते, जीवन की,
पिस कर रह गया है, हर इंसान..।
बचपन के संजोए हुए वो सपने,
आसमान को छूने की वो हसरतें,
जद्दोजहद में, ना जाने कहां खो गए,
जाने कब... जुदा हो गए, वो रास्ते.!

संवरे हुए बाल...ऐंठी हुई मूछें..
जाने कब इस आपाधापी में बिखर गए,
चेहरे की वो नूरानी चमक, वो रूप,
जाने कब, झुर्रियों की छांव में छुप गए।
वो कसरति बदन...वो बलिष्ठ भुझाएं,
अनजानी आकांक्षाओं में ऐसे अटक गए,
रोटी कमाने के चक्कर में जाने,
कब मांस के लोथड़ों की तरह, लटक गए।

वो सीधी कमर, वो लहराती चाल,
जीवन के बोझ तले, झुक कर रह गई,
घोड़ों की टाप सी, कदमों की ठोक,
जाने कब धीमी आहट बन रह गई।
जिन होठों पर कभी बजती थी सीटियां,
जाने कब सिकुड़ कर, खामोश हो गए,
मुस्कुराहटों का बसेरा था, कभी इन पर,
लेकिन जाने कब ये, गमगोश हो गए।

वो कठोर हाथ अब, कांप जाते हैं,
ठोकर खा, कदम लड़खड़ा जाते हैं,
चमकती खुली आंखें, सिकुड़ जाती हैं,
सीटीओं वाले होंठ, थरथरा जाते हैं।
महत्वकांक्षाओं का सागर अब तो,
सिमट कर, तालाब बन रह गया है,
सुगम रास्ता जिंदगी का कितना...
जटिल बन कर.... रह गया है..!!!


हरजीत सिंह मेहरा


चाहत पर कविता

चाहतों का कोई, किनारा नहीं होता..
चाहतों का मिलना, दुबारा नहीं होता..
चाहतों की सुबह..रंगीन होती है..
चाहतों की शाम..ग़मगीन होती है!

चाहत..दिल के मीठे दर्द का नाम है..
चाहत..पहली मोहब्बत का सम्मान है..
चाहत.. ख़्वाबों की खिली मुस्कान है..
चाहत.. प्रेमियों का पाक़ ईमाऩ है!

चाहतों का कोई..तोल नहीं होता..
चाहतों का कोई..मोल नहीं होता..
चाहतें.. दिलों की तरंग होती हैं..
चाहतें.. जीवन की उमंग होती हैं!

चाहतों का निर्धारित..लक्ष्य नहीं होता..
चाहतों का कोई.. पक्ष नहीं होता..
चाहत बिना.. जिंदगी वीरान है..
चाहत के बिना, अधूरा.. इंसान है!!
हरजीत सिंह मेहरा
लुधियाना पंजाब।
85289-96698

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ