विश्व जल दिवस राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय जल दिवस पानी बचाओ अभियान
विश्व जल दिवस पर कविता
(शुरुआत : 22 मार्च 1993)
जल है तो कल है, जल से है जिंदगानी,
जल से ही शुरू होती जीवन की कहानी।
जग जल संग्रहण करे, और समझे मोल,
जहां जल की कमी है, होती है परेशानी।
जल है तो कल है…
विश्व जल दिवस का अलबेला संदेश एक,
जल संरक्षण का काम होता है बड़ा नेक।
जल की बर्बादी का है बड़ा बुरा परिणाम,
बूंद बूंद को तरसा देता है, बहता पानी।
जल है तो कल है…
वनस्पति जगत हो या प्राणी जगत यहां,
जल के संग संग, बह जाती है जवानी।
जल संरक्षण बढाता है, जल का भंडार,
जीवन पर रहती है जल की मेहरबानी।
जल है तो कल…
जल नहीं रहा तो, घर में नल बेकार,
और चौपट हो जाएगी खेती, किसानी।
जल का संरक्षण, कल का संरक्षण है,
जो समझे, उसकी तो दुनिया दीवानी।
जल है तो कल…
विश्व जल दिवस की शुरुआत कब हुई?
शुरुआत : 22 मार्च 1993
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र) जयनगर (मधुबनी) बिहार
विश्व जल दिवस पर कविता | जल संरक्षण पर स्लोगन हिंदी में
जल दिवस की आप सबको हार्दिक शुभकामनाएँ।
अंतरिक्ष तले आकाश है,
आकाश तले है धरातल।
सबसे नीचे तो पाताल है,
दोनों के बीच रहता जल।।
मानव बदला प्रकृति बदला,
प्राकृतिक ढंग हुआ बेढंग।
मानव करता छेड़छाँड़ इतनी,
आज मानव होते बहुत तंग।।
भाग रहा जल धीरे धीरै नीचे,
बढ़ रहा संकट पल प्रति पल।
दादा पापा देखे नदी कुएँ पानी,
मैंने देखा नल तो बेटा बोतल।।
हो नहीं सकता जल की पूर्ति,
एक दिन जल दिवस मनाने से।
किंतु संभव है जल की पूर्ति,
आज संकल्प दिवस अपनाने से।।
जब तक जल तब तक वृक्ष है,
वृक्ष नहीं तो फिर कहाँ है वर्षा।
जल वृक्ष वर्षा नहीं जो संभव,
जीव जीवन जीने हेतु है तरसा।।
जल बचाओ जीवन बचाओ,
जल है तो जीवन और जहान।
जीवन बचाना है या है गँवाना,
यही आज मानव का इम्तिहान।।
वृक्ष जीवन हेतु जल आवश्यक,
तो जल जीवन हेतु है बरसात।
तीनों हुए जो दुनिया से नदारत,
सृष्टि भी खाएगी जीवन से मात।।
जल बचाओ और वृक्ष लगाओ,
आएगी पुनः भरपूर ही बरसात।
बन जाएगा खुशहाल यह जीवन,
कर लें इन्हें हम यदि आत्मसात।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
अरुण दिव्यांश 9504503560
जल संरक्षण पर कविता हिंदी में | जल संरक्षण पर नारे हिंदी में
आकाश
धरातल पर है वास हमारा,
छाजन है नीलांबर आकाश।
धरा बुझाती भूख प्यास हमारा,
नीलांबर बुझाता धरा की प्यास।।
दोनों बीच लटका जीव जीवन,
जीवन है दोनों पर ही आधारित।
प्रकृति की है अजीब सी रचना,
जीवन हेतु यह प्रस्ताव है पारित।।
अपने जीवन की ही सुरक्षा हेतु,
अन्य जीवन का भी करो सुरक्षा।
अन्यों पर हमारा जीवन आधारित,
अपने जीवन की जो चाहें हम रक्षा।।
करोगे दया यदि तुम भी अन्य पर,
पर से पाओगे तुम भी दुआ दया।
हुए यदि तुम दया करने से वंचित,
तुम्हारा जीवन भी दुनिया से गया।।
आकाश में है छुपा हुआ रहस्य,
संकट काल में बुलाते आ काश।
इसके पहले वे हैं याद नहीं आते,
जबकि उर में है काश का वास।।
जीवन जीना हमें तले आकाश,
भूल जाते हम भी करना आभास।
जल भी मिलेंगे वृक्ष भी मिलेंगे,
अपनी भूल को हम करें एहसास।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अरुण दिव्यांश 9504503560
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