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विश्व कविता दिवस 21 मार्च | अंतर्राष्ट्रीय कविता दिवस तराना

विश्व कविता दिवस 21 मार्च | World Poetry Day 2021

विश्व कविता दिवस 21 मार्च | World poetry day 2021 photo

Vishva Kavita Divas 21 March 2021

विश्व कविता दिवस का तराना

कविता मन का मर्म है, दिल का दर्द है,
साहित्य की, उज्जवल अविरल है धारा।
इसका न कोई ओर है, न कोई छोर है,
लिखनेवाले, पढ़ानेवाले सबका है सहारा।
सुननेवाले भी बड़े दीवाने होते हैं इसके,
ऐसी धारा, जिसका कहीं नहीं है किनारा।
कविता मन का मर्म…
यह साहित्य की एक सुंदर प्यारी शैली है,
माथे पर जिसके, चमकते बिंदिया सितारा।
21 मार्च का दिन प्यारी कविता के नाम है,
मन की आंखों से, दिखता है हर नजारा।
साल 2000 से ही, इसकी शुरुआत हुई है,
जग ने दिल से, कविता दिवस स्वीकारा।
कविता मन का मर्म…
कम शब्दों में कविता सब कुछ कह देती,
हो गई है उसकी, जिसने प्यार से पुकारा।
कविता एक सूनी तस्वीर में रंग भरती है,
कविता ने सदा उजड़े चमन को है संवारा।
गीत, गजल, गाने सभी इसी के रूप होते,
कथा के मुंह में मिलता कविता का नारा।
कविता मन का मर्म…
कविता शिक्षा और ज्ञान का रूप है सच्चा,
गम में डूबकर, कविता ने गम को मारा।
प्यार में अगर, कोई कवि बन जाए कहीं,
दोष उसका नहीं, कविता का होगा सारा।
दीवानों को कोई कवि कहता, कोई बेचारा,
कागज, कलम लेकर, फिरता मारा मारा। 
कविता मन का मर्म…
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र) जयनगर (मधुबनी) बिहार


अंतर्राष्ट्रीय कविता दिवस की हृदयतल से बहुत सारी शुभकामनाएँ। अंतर्राष्ट्रीय कविता दिवस के शुभ अवसर पर एक कविता

कविता
महाकाव्य का काव्य है कविता,
मानवता का संभाव्य है कविता।
सुन्दर स्वरूप को सँवारनेवाला,
मानवीयता का आद्य है कविता।।
कवि हृदय का भाव है कविता,
निर्मल गंगा का बहाव है कविता।
तन मन में खुशियाँ बरसानेवाला,
कवियों का यह चाव है कविता।।
कविता स्वर से गीत बन जाता,
गीत जीवन का मीत बन जाता।
कविता को चाहे जैसे भी बहा लो,
कविता जीवन रीत बन जाता।।
कविता से भरा काव्य महासागर,
महासागर रूप समाहित गागर।
ऊँच नीच अच्छाई और बुराई,
मनोभावों को करता है उजागर।।
कविता से ही तो यह काव्य है
काव्य से ही होता है यह कवि।
कवि भाव पहुँचता है वहाँ पर,
जहाँ पहुँच पाता नहीं है रवि।।
पावन पवित्र होती हैं कविताएँ,
पावन पवित्र कवि का होता भाव।
जन जन में संस्कार भरनेवाला,
नहीं होती कविताओं में छाव।।
कविता मानव में मानवता भरती,
मानवता से मानव पाता है देवत्व।
अहंकार से सदा दूर वह है होता,
निःस्वार्थ विनम्रता पर अधिपत्य।।
कविता में नही होता है दाँव पेंच,
कविता है मानवता रूपी ही छाँव।
कविता केवल निर्भर नहीं शहर में,
अरुण दिव्यांश बसे डुमरी गाँव।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
अरुण दिव्यांश 9504503560

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