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होली क्यों मनाई जाती है | होली का महत्व क्या है? | निबंध

होली का इतिहास क्या है? | होली की शुरुआत कैसे हुई?

होली क्यों मनाई जाती है | होली का महत्व क्या है? | निबंध


होली पर्व की आप सबों को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ।
विषय-होली पर निबंध

होली कैसे मनाई जाती है? | होली रंगों और उमंगों का त्योहार है

होली रंगों और उमंगों का त्योहार है। ये फागुन महीने में मनाया जाता है,ये सबों के लिए उत्साह,उमंग और भाईचारा बनकर रहने वाला त्योहार है। इस त्योहार में अधिकतर बच्चे ज्यादा खुश होते हैं। होली होलिका और प्रह्लाद के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि हिरण्य कश्यप दैत्यों का राजा था वह अपने आपको भगवान मानता था, वह अपने सभी प्रजाओं को कहता कि मैं तुम्हारा भगवान हूॅ॑ तुम सब मेरी पूजा करो! मैं हीं तुम सबों का अन्नदाता हूॅ॑, जो मेरी बात को नहीं मानेगा उसको हम मार देंगे।सभी प्रजा मरने के डर से हिरण्य कश्यप को भगवान मानने लगे, जो कोई बोलता कि ये हमारे भगवान नहीं हैं ,ये हमारे भगवान नहीं हो सकते हैं, हिरण्य कश्यप उसको तुरंत जान से मार देता था । हिरण्य कश्यप की एक बहन थी जिसका नाम होलिका था वह भी अपने भाई के तरह क्रूर और राक्षसनी थी, उसको एक भी संतान नही था। हिरण्य कश्यप को एक बेटा हुआ उसका नाम अह्लाद था । जब वह छोटा नवजात शिशु था तभी होलिका ने अपने भाई से कहकर उसको गोद ले लिया और अपना बेटा मानने लगी। अह्लाद को भी पोस-पालकर बड़ा बनाकर राक्षस बना दिया।
हिरण्य कश्यप की पत्नी बहुत हीं सरल स्वभाव की थी,वह ईश्वर पर विश्वास करती थी, हर हमेशा पति से छिपछिप कर ईश्वर का गुणगान करती थी। अगर कभी उसका पति सुन लेता था कि यह नारायण का नाम ले रही है तो वह अपनी पत्नी को मारमार कर जख्मी कर देता था। इसी बीच हिरण्य कश्यप की पत्नी माॅ॑ बनने वाली थी हिरण्य कश्यप को जब पता चला तो वह बहुत खुश हुआ। हिरण्य कश्यप अपने आप को और बलशाली बनाने के लिए कि हमें कोई मार नही सके ,मैं किसी अस्त्र शस्त्र से नहीं मर सकूॅ॑ ,के लिए अपने गुरू शुक्राचार्य से अनुमति लेकर ,अपने विश्वास पात्र मंत्री के ऊपर अपनी पत्नी को छोड़ कर वह जंगल में तप करने चला गया।उसकी पत्नी गर्भवती थी।

प्रहलाद का जन्म कैसे हुआ?

इधर जैसे हीं हिरण्य कश्यप तप करने के लिए गया, उधर इंद्र को पता चला कि हिरण्य कश्यप की पत्नी गर्भवती है तो वह तुरंत उस बच्चे को जो अभी जन्म भी नहीं लिया था उसको मारने चला आया। हिरण्य कश्यप की पत्नी सोई हुई थी, तभी इंद्र ने उसका अपहरण कर लिया और साथ में ले जाने लगा ,जब उसकी नींद खुली तो वह उससे उलझ पड़ी और चिल्लाने लगी तभी नारद जी वहाॅ॑ आए और इंद्र को समझाकर हिरण्य कश्यप की पत्नी को अपने साथ अपने घर ले गये नारद जी रोज सत्संग करते और हिरण्यकश्यप की पत्नी को भी सत्संग भजन सुनाते । ऐसे हीं कुछ दिन बाद प्रह्लाद का जन्म हुआ। प्रह्लाद माॅ॑ के पेट में जो सत्संग सुना था इसीलिए वह संस्कारी था उसके अंदर ईश्वर के प्रति बहुत श्रद्धा थी। हर हमेशा ओम वासुदेवाय नमः का उच्चारण करता रहता था। जब हिरण्यकश्यप तप करके वापस आया तब अपने बेटे को देखकर बहुत खुश हुआ,बोला मैं इसको अपने जैसा बनाउॅ॑गा। प्रह्लाद जब कुछ बड़ा हुआ तो सिर्फ भगवान का नाम लेता रहता था। एक दिन हिरण्यकश्यप को पता चला कि उसका उसका बेटा उसका नाम नहीं लेकर भगवान का नाम जपता है तो उसको बुलाकर कहा कि आज से तुम मेरा हीं नाम लेना मैं हीं सबका भगवान हूॅ॑, और कभी भी उस दुष्ट भगवान का नाम नहीं लेना। प्रह्लाद ने जैसे हीं ईश्वर के बारे में अपने पिता से गलत शब्द सुना तो वह आग-बबूला हो उठा, बोला आप भगवान कैसे हो सकते हैं, मैं आपको कभी भी भगवान नहीं मानूॅ॑गा। हिरण्यकश्यप प्रह्लाद की बातों को सुनकर कहा कि यह तो मेरा नाम नहीं लेकर हमारे शत्रु का नाम लेता है ,अब हिरण्यकश्यप प्रह्लाद को मारने का उपाय सोचने लगा,प्रह्लाद को बहुत बार जान से मारना चाहा लेकिन वह असफल रहा,प्रह्लाद को नहीं मार सका । जितना बार मारना चाहा उतना हीं बार वह बच जाता था क्योंकि प्रह्लाद साधारण बच्चा तो था नहीं वह तो  ईश्वर का अवतार रुप था। ऐसे हीं कुछ दिन और बीता।

होलिका दहन की कहानी

एक दिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका अपने मायके आई । वह जब अपने भाई से मिलने उसके कक्ष गई तो देखी उसका भाई किसी चिंता में है ,वह भाई को प्रणाम कर और चिंता का कारण पूछी, तब उसका भाई प्रह्लाद को मारने के लिए बताया कि यह कैसे मरेगा अगर तेरे पास इसको मारने का कोई उपाय है तो बताओ।अब उसकी बहन बोली कि इतनी सी बात के लिए आप चिंता करते हैं ये तो मेरा चुटकी का खेल है ।.कल प्रह्लाद मर जाएगा, मेरे पास एक ऐसा वरदान है कि मैं अगर आग में बैठूॅ॑गी तो कभी नहीं जलूॅ॑गी क्योंकि ब्रह्मा जी मुझे एक ऐसा चादर दिए हैं कि अगर उसको ओढ़कर कितनी भी भयंकर आग में बैठ जाऊॅ॑ तो मैं नहीं जलूॅ॑गी।
अब तो हिरण्यकश्यप का खुशी का ठिकाना नहीं था। दूसरे दिन 
लकड़ी का ढेर लगाया उसपर प्रह्लाद को गोदी में लेकर होलिका बैठ गई अब अपने भाई को कहा कि आग लगवा दीजिए, होलिका के कहने पर उसके भाई हिरण्य कश्यप ने आग लगा दी । आग चारों तरफ से लग गई आग के बीच में होलिका हा  हा हा कर हॅ॑स रही थी ,प्रह्लाद अपनी बुआ के गोदी में बैठ कर भगवान विष्णु का ध्यान कर रहा था, तभी एक अचरज सी बात हो गई होलिका के देह पर से चादर उड़कर प्रह्लाद के शरीर पर आ गया और होलिका के शरीर में आग लग गई होलिका चिल्लाने लगी बचाओ बचाओ लेकिन उसको बचाने वाला कौन था, कोई नहीं वह वहीं जलकर राख हो गई।और प्रह्लाद ओम भगवते वासुदेवाय नमः करके आग से निकल गया ।सब देखते रह गया।तब हिरण्यकश्यप को बहुत गुस्सा आया और बोला चलो आज मैं तुमको अपने हाथों से मारुॅ॑गा देखते हैं तुमको कौन बचाने आता है ,बोल तुम्हारा भगवान कहाॅ॑ है क्या इस खंभे में भी तुम्हारा भगवान है,प्रह्लाद बोला जी पिता श्री मेरे भगवान हर जगह हैं आपके अंदर,मेरे अंदर,और इस खंभे के भी अंदर ,अब हिरण्यकश्यप ने अपनी तलवार उठाई और खंभे पर दे मारा जैसे हीं खंभे पर तलवार चलाई , खंभे के अंदर से नरसिंह भगवान प्रकट हुए और बोले रे दुष्ट तुमने मेरे शिष्य को बहुत कष्ट दिया है अब तुमको मैं नहीं छोरूॅ॑गा ,और नरसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप को गोदी में उठाया और शामके समय घर के बरामदे यानि ओलती में अपने जंघे पर बैठाकर ,छाती चीरकर उसका वद्ध कर दिया । तो भक्त की रक्षा के लिए भगवान कैसे प्रकट हो जाते हैं।
इसी कहानी पर होली त्योहार मनाया जाता है ,उसी होलिका को जलाकर हम लोग होली पर्व सम्पन्न करते हैं। और अभी के समय में हम सभी सादगी से होली मनाएँँ अपने अंदर छिपे काम,क्रोध मोह, लोभ-लालच, अहंकार ,व्यभिचार जैसे होलिका को जलाकर भस्म करें ,समय पर सभी काम करते हुए थोड़ा समय निकाल कर ईश्वर भजन करें तभी होली मनाना सफल होगा ।
होली
सदा अनंदा रहे यही द्वारे,
मोहन खेले होली हो।
आप सबों को एक बार फिर होली की रंग भरी शुभकामनाएं।
नीतू रानी, पूर्णियां बिहार।

होली पर शायरी पढ़ने के लिए क्लिक करें : मालपुआ खाओ होली मनाओ, होली पर विशेष कविता

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