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अल्लाह की पसन्द-नापसन्द को अपनी पसन्द-नापसन्द बना ले | फलसफा

अल्लाह से मोहब्बत का फलसफा | इस्लामिक बातें हिंदी में

Allah Se Mohabbat Ka falsafa


मोहब्बत का फ़लसफ़ा ये है कि जब किसी शख़्स से मुझे मोहब्बत होती है तो उसकी हर चीज़ मुझे महबूब हो जाती है, उसकी पसन्द मेरी पसन्द बन जाती है और उसकी नापसन्द मेरी नापसन्द बन जाती है; उसका दोस्त मेरा दोस्त बन जाता और उसका दुश्मन मेरा दुश्मन बन जाता है. उसके हर हुक्म को मैं ख़ुशी से बजा ही नहीं लाता बल्कि इशारे का मुन्तज़िर रहता हूँ कि कब मुझे इशारा मिले और मैं उसे पूरा करने के लिये एक्शन में आऊँ। मोहब्बत में अगर ये कैफ़ियत न हो, यानी मैं सिर्फ़ महबूब से ही मोहब्बत करूँ, उसकी किसी चीज़ से मुझे मोहब्बत न हो, लगाव न हो, उसके हुक्मों से और उसकी पसन्द-नापसन्द से मुझे कोई सरोकार ही न हो तो ये मोहब्बत नहीं बल्कि महज़ खोखले जज़बात हैं, यानी मोहब्बत का दावा किसी न किसी मफ़ाद की तस्कीन का ज़रिआ है।

अल्लाह से मोहब्बत का दावा करे तो

मोहब्बत के इस फ़लसफ़े को सामने रखकर कहा जा सकता है कि अगर कोई शख़्स अल्लाह से मोहब्बत का दावा करे तो लाज़िम है कि उसकी मख़लूक़ से भी मोहब्बत करे। उसके हुक्मों को ख़ुशी के साथ बजा लाए, उसकी पसन्द-नापसन्द को अपनी पसन्द-नापसन्द बना ले।
अल्लाह से मोहब्बत का ऐलान करना और उसकी हुक्मों से सरताबी करना फ़िस्क़ है जिसे अल्लाह कभी पसन्द नहीं करता।
अल्लाह से मोहब्बत का दावा करना और उसकी मख़लूक़ से नफ़रत करना मोहब्बत नहीं अनानियत और सरकशी है जिसे अल्लाह कभी माफ़ नहीं कर सकता।
अल्लाह से मोहब्बत का दम भरना और उसके दुश्मनों के साथ दोस्ती करना मोहब्बत नहीं परले दर्जे की मुनाफ़िक़त है, जिसकी सज़ा दुश्मन की सज़ा से भी ज़्यादा सख़्त है।
मोहब्बत का ये फ़लसफ़ा अगर हमारे पेशे-नज़र रहे तो हमारे घरेलु ताल्लुक़ात भी मुस्तहकम और मज़बूत हो जाएँगे। सास-बहू और ननद-भावज के दरमियान रिश्तों में मिठास पैदा हो जाएगी। लड़की के घरवालों और लड़के के घरवालों के दरम्यान खिंचाव की कैफ़ियत ख़त्म होकर नज़दीकियाँ बढ़ने लगेंगी।

माँ-बाप को अपने बेटे से मोहब्बत होती है

अक्सर देखा ये गया है कि माँ-बाप को अपने बेटे से मोहब्बत होती है लेकिन बहू पर वो लोग ज़ुल्म कर रहे होते हैं। बेटे और बहू के दरम्यान बढ़ रही मोहब्बत से माँ-बाप ख़ौफ़ज़दा हो जाते हैं, जबकि इस पर तो उन्हें ख़ुश होना चाहिये था। ज़रा सोचें! ये कैसे मुमकिन है कि जिस बेटे से वो मोहब्बत का दावा कर रहे हैं उसके घर को ख़ुद अपने हाथों से आग लगा दें, नहीं हरगिज़ नहीं। लेकिन हम देखते हैं कि माँ-बाप अपने बेटे को बहू पर तरजीह देकर अपने बेटे के घर में आग ही लगा रहे होते हैं, उसके सुकून को तबाह कर रहे होते हैं। बहनें अपने भाई की मोहब्बत का खोखला दावा करके भावज को घर की नौकरानी बना देती हैं। ज़रा सोचें कि क्या इस तरह कभी घर के अन्दर ख़ुशगवार माहौल पनप सकता है?


इसी तरह जो लड़की ये दावा करती है कि वो अपने शौहर से मोहब्बत करती है तो कैसे मुमकिन है कि उसके शौहर को जान से ज़्यादा अज़ीज़ माँ-बाप से वो बेनियाज़ हो जाए और उनकी कोई परवाह न करे, उनका ख़याल न रखे। यक़ीनन अपने शौहर और अपने घरवालों के मुक़ाबले में सास-ससुर और ननद को नज़र-अन्दाज़ करके वो ख़ुद अपने हाथों अपने घर में आग लगा रही होती है।

दर-असल हमारी इबादतों के बे-रूह होने और हमारे समाज के अन्दर रिश्तों के दरम्यान पाई जानेवाली कड़ुवाहटों की एक बड़ी वजह यही है कि हमारे समाज में मोहब्बत का सही मतलब नहीं समझा गया है। रिश्तों के दरम्यान खोखले जज़्बात को हमने मोहब्बत का नाम दे दिया है या अपने मफ़ादात को पूरा करने के लिये की जानेवाली नाजायज़ कोशिशों को हमने मोहब्बत का नाम दे दिया है।


अगर इस लफ़्ज़े-मोहब्बत को सही तरीक़े से समझने और समझाने में हम कामयाब हो गए तो यक़ीन जानिये हमारे समाज के अन्दर इन्सानों के दरमियान पाए जानेवाले मुख़्तलिफ़ रिश्तों में मिठास भी आएगी और मज़बूती भी। इस तरह हमारा ख़ानदान महब्ब्त का सिम्बल और हमारा समाज अम्न व सलामती का गहवारा बन जाएगा।

अजान क्या है | अजान का तरीका | अजान कैसे देते हैं

अज़ान के ख़िलाफ़ जो माहोल बनाया जा रहा है उसके लिये किसी हद तक मस्जिद कमेटिया और अवाम की लापरवाही दोनो जिम्मेदार हैं।
अज़ान इस्लाम की निशानियों मे से एक है जिसके ज़रिये सबसे बेहतरीन अल्लाह की इबादत के लिये लोगो को 5 बार मस्जिद में बुलाया जाता है।
अज़ान मे ऐसी मिठास और कशिश होनी चाहिये कि जब अज़ान दी जाये तो उसकी मिठास से चलता हुआ आदमी रूक जाये और अज़ान उसके दिल को सुकून पहुंचाए। जैसा की हम सोशल मीडिया पर देखते हे कई मुल्को मे अज़ाने इस कदर बेहतरीन होती हैं कि ग़ैर भी रुक कर वहां वीडियो रिकॉर्डिंग वग़ैरह कर रहे होते हैं।
लेकिन हो क्या रहा है जिन लोगो के ना तलफ़्फ़ुज़ सही हैं ना तरज सही है और ना अल्फ़ाज़ सही हैं जिनके मुह मे दांत नही जो एक उम्र को पार कर चुके हैं जिनका अज़ान मे कम, चीख़ने पर ज़्यादा फ़ोकस है ऐसे लोगो से अज़ाने दिलवाई जा रही हैं ऊपर से ज़ुल्म ये कि माईक और लाउड स्पीकर की बेतरतीब सेटिंग और इको सिस्टम माईक मे ना लगा होना। कुछ तो माईक को मुंह मे घुसाकर अज़ान दे रहे होते हैं जिससे लाउड स्पीकर पर आवाज़ डबल हो जाती है और तरज़ ग़ायब हो जाती है। इनसब वजुहात की वजह से कई जगह अज़ान एक आज़माइश बन जाती है।
लिहाज़ा तमाम अराकीने मस्जिद कमेटी से मोअदेबाना गुज़ारिश है कि जिन हज़रात की आवाज़ मे कशिश हो तलफ़्फ़ुज़ पूरे सही से अदा हो रहे हों और तरज़ भी बेहतरीन हो तो ऐसे लोगो से अज़ान दिलवाई जाये यह बिल्कुल जरूरी नही की सिर्फ़ मोअज़्ज़िन ही अज़ान दे।
इसके साथ ही माईक इको और लाउड स्पीकर बेहतरीन हों प्रोपर सेट किये हों। इको सिस्टम हर मस्जिद मे होना चाहिये अज़ान के लिये।
माईक स्पीकर की सेटिंग इस तरह हो कि अज़ान देने वाले को माईक मे ना घुसना पड़े थोड़ी डिस्टेंस से भी अज़ान की आवाज प्रोपर लाउड स्पीकर मे पहुँच जाये।
जब इको के साथ बढ़िया आवाज और बेहतरीन तरज़ मे अज़ान दी जायेगी तो एक अलग ही खुशनुमा माहौल पैदा होगा और इन्शाअल्लाह अज़ान सुनकर ही कई ईमान ले आयेंगे।
अवाम से भी गुजारिश है जहां कही भी improper अज़ान दी जा रही हो तो फ़ौरन मस्जिद कमेटी पर दबाव बनाकर सही इन्तिज़ाम करवायें।
आने वाले रमज़ानो से पहले सभी मस्जिदें अपने माईक वग़ैरह को properly set करवा लें इन्शाअल्लाह एक अलग ख़ुशनुमा माहोल बनेगा।
अल्लाह हमे हर जायज़ काम ख़ासतौर से इबादत बेहतरीन अन्दाज़ मे करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाये- आमीन।
इस तहरीर को तमाम मस्जिद कमेटियों तक पहुचाने मे मदद करें।
शुक्रिया

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