फूलों के इर्द गिर्द न दिलकश ह़िजाब में।
तस्वीर तेरी रखता हूँ दिल की किताब में।
बेला, चमेली, सुम्बुलो, चम्पा की बात क्या।
तेरे बदन सी ख़ुश्बू कहाँ है गुलाब में।
ये मस्त-मस्त नज़रें न ऐसे मिलाईए।
मैं ग़र्क़ हो न जाऊँ कहीं इस शराब में।
ह़ैरान हूँ मैं देख के ह़रकाते आईना।
खोया हुआ है यह भी तुम्हारे शबाब में।
ह़ुस्न-ओ-जमाल उसका बहुत ख़ूब है मगर।
तुझ सी अदा कहाँ है भला माहताब में।
ख़ामोश यूँ न बैठो करो लबकुशाई तुम।
आता है लुत्फ़ मुझको तुम्हारे ख़िताब में।
उस शब को मानता है ह़सीं शब ये दिल फ़राज़
दीदारे यार होता है जिस शब को ख़्वाब में।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़
पीपलसाना मुरादाबाद
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