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Mirza Ghalib shayari on stability of mind मिर्ज़ा ग़ालिब बेहतरीन शायरी

Mirza Ghalib shayari on stability of mind

Mirza Ghalib shayari in hindi

Mirza Ghalib shayari on stability of mind-मन की स्थिरता पर मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी

Mirza Ghalib Poetry in Hindi

Aah ko chahiye Ek Umr Asar hone Tak

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक

दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक

ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र
सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक

हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक

परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होते तक

यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होते तक

ग़म-ए-हस्ती का असद किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक

Mirza Ghalib ki shayari

Hazaro khwahishe Aisi Ki Har Khwahish pe Dam Nikle

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले

निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले

भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले

मगर लिखवाए कोई उस को ख़त तो हम से लिखवाए
हुई सुब्ह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले

हुई इस दौर में मंसूब मुझ से बादा-आशामी
फिर आया वो ज़माना जो जहाँ में जाम-ए-जम निकले

हुई जिन से तवक़्क़ो ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हम से भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले

कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा ग़ालिब और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले

Mirza Ghalib Poetry

Yeh Na Thi Hamari Kismat Ke Visal Yaar Hota

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता

तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतिबार होता

तिरी नाज़ुकी से जाना कि बँधा था अहद बोदा
कभी तू न तोड़ सकता अगर उस्तुवार होता

कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता

ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता

रग-ए-संग से टपकता वो लहू कि फिर न थमता
जिसे ग़म समझ रहे हो ये अगर शरार होता

ग़म अगरचे जाँ-गुसिल है प कहाँ बचें कि दिल है
ग़म-ए-इश्क़ गर न होता ग़म-ए-रोज़गार होता

कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता

हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरिया
न कभी जनाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता

उसे कौन देख सकता कि यगाना है वो यकता
जो दुई की बू भी होती तो कहीं दो-चार होता

ये मसाईल-ए-तसव्वुफ़ ये तिरा बयान ग़ालिब
तुझे हम वली समझते जो न बादा-ख़्वार होता

Mirza Ghalib Quotes

Har Ek Baat Pe Kehte Ho Tum Ke Tu Kya Hai 

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है

न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा
कोई बताओ कि वो शोख़-ए-तुंद-ख़ू क्या है

ये रश्क है कि वो होता है हम-सुख़न तुम से
वगर्ना ख़ौफ़-ए-बद-आमोज़ी-ए-अदू क्या है

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन
हमारे जैब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है

Mirza Ghalib Shayari In Hindi

मिर्ज़ा ग़ालिब बेहतरीन ग़ज़लें-best Ghazals of Mirza Ghalib

मिर्जा गालिब दर्द शायरी इन हिंदी

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

वो चीज़ जिस के लिए हम को हो बहिश्त अज़ीज़
सिवाए बादा-ए-गुलफ़ाम-ए-मुश्क-बू क्या है

पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो-चार
ये शीशा ओ क़दह ओ कूज़ा ओ सुबू क्या है

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
तो किस उमीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है

हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतराता
वगर्ना शहर में ग़ालिब की आबरू क्या है

निज़ामे-जंग दबीर-उल-मुल्क नज़्म-उद-दौला

असदुल्लाह ख़ान मिर्ज़ा ग़ालिब

मिर्ज़ा ग़ालिब के दीवान से

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