Good Morning Motivation
कार्तिकी प्रणाम
गुत्थी ऐसी उलझी है कि मन को दिया भरमाय
खुली आंख है लेकिन उससे देता नहीं दिखाय
अंधें मौज में देख रहें हैं बहरा भी सजग सुभाग
कैसी नीति रीति बीच हम हैं मन को रहा सुलाय!
लता प्रासर
शरद की गुनगुनी धूप का स्वागत
शारदीय सुप्रभात
मेरी बस्ती में तेरा ठिकाना होता
मेरी हस्ती में तेरा फ़साना होता
भुलाकर खुद को खोई हूं क्यों
मेरी मस्ती में तेरा तराना होता!
लता प्रासर
सुप्रभात शायरी
प्रेम की मोती सी ओस की बूंदें गिरती हैं
हरियाली से लिपट लिपटकर गीत लिखती है
गुनगुना धूप समाकर उसमें अपनी ओर खींचें
प्रेम विरह के इस पल में दुनिया की आंखें खुलतीं हैं!
लता प्रासर
जिंदगी में मौसम आहिस्ते से रंग बदल रहा है
कतकी सुप्रभात
मैं जनता हूं
काम धंधा कुछ करना चाहूं
आवागमन को राह निहारूं
मैं जनता हूं
मैं जनता हूं
उनकी बातें कहां समझता हूं
तन मन धन से मरता हूं
मैं जनता हूं
मैं जनता हूं!
लता प्रासर
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