हिंदी कविता प्रकृति पर
ओस पर शायरी
ओस की बूंदों का आमंत्रण स्वीकार करें
कविताएं हिंदी में लिखी हुई |
सुप्रभात
सुप्रभात सुविचार हिंदी
रात से उलझी हुई सुबह
सूर्य की पनाह में खिली है
फिर दिन की परिक्रमा
उलझती जिंदगी के धागे
सहेजते हुए नर नारी
अंधेरे से उजाले
उजाले से अंधेरे
के बीच
जिंदगी तौलते रहते हैं
आओ मिलकर
हम तौलते है
मौन और मुखरता को
खोजते हैं
सहज सुलभ मुस्कुराहट
हल्की सी आहट के साथ
हवा मौसम को छूकर
मौसम का रंग बदल देती है
प्रकृति दोनोें के रमणीयता से
आत्म विभोर हो खिलखिला उठती है
आंखें खोलो
समा जाओ इसमें
को जाओ प्रकृति संग
लता प्रासर
सूर्य की पनाह में खिली है
फिर दिन की परिक्रमा
उलझती जिंदगी के धागे
सहेजते हुए नर नारी
अंधेरे से उजाले
उजाले से अंधेरे
के बीच
जिंदगी तौलते रहते हैं
आओ मिलकर
हम तौलते है
मौन और मुखरता को
खोजते हैं
सहज सुलभ मुस्कुराहट
हल्की सी आहट के साथ
हवा मौसम को छूकर
मौसम का रंग बदल देती है
प्रकृति दोनोें के रमणीयता से
आत्म विभोर हो खिलखिला उठती है
आंखें खोलो
समा जाओ इसमें
को जाओ प्रकृति संग
लता प्रासर
आषाढ़ चौदहवीं का चांद मुबारक
शुभ रात्रि सुविचार
कितनी दूर तक जाएगी आवाज़ मेरी
कौन समझेगा यहां भाषा मेरी
चुप रहना हमें आता नहीं साहब
किससे कहें क्या है अभिलाषा मेरी!
लता प्रासर
कौन समझेगा यहां भाषा मेरी
चुप रहना हमें आता नहीं साहब
किससे कहें क्या है अभिलाषा मेरी!
लता प्रासर
भादो की श्यामली रजनी मुबारक
तुम्हारे आंखों की चमक बखूबी बोलते हैं
तुम्हारे लबों पर बंधी चुप्पियां शब्द तोलते हैं
कहने सुनने की नई परिभाषा दी है तुमने
अरे तुम तो वो हो जो आंसुओं में मिश्री घोलते हैं!
लता प्रासर
तुम्हारे लबों पर बंधी चुप्पियां शब्द तोलते हैं
कहने सुनने की नई परिभाषा दी है तुमने
अरे तुम तो वो हो जो आंसुओं में मिश्री घोलते हैं!
लता प्रासर
मलमासी नमस्कार
मायने सबके अपने-अपने हैं
आंखों में सबके सपने हैं
खेल रहे वक्त के संग सभी
सुर्ख़ियों में उन्हें छपने हैं
अच्छा खुद को बता रहे
खुशियां उन्हें हड़पने है!
लता प्रासर
आंखों में सबके सपने हैं
खेल रहे वक्त के संग सभी
सुर्ख़ियों में उन्हें छपने हैं
अच्छा खुद को बता रहे
खुशियां उन्हें हड़पने है!
लता प्रासर
जेठुआ प्रणाम
किसने देखा आंखों में उमड़ते बाढ़ को
हर तरफ सैलाब जबसे उमड़ आया है
मासूमियत को कठोर कर दिया है कितना
अपनों में परायेपन का जबसे बहाव आया है!
लता प्रासर
हर तरफ सैलाब जबसे उमड़ आया है
मासूमियत को कठोर कर दिया है कितना
अपनों में परायेपन का जबसे बहाव आया है!
लता प्रासर
जेठुआ तिमिर निशा का स्वागत
मृदुल पवन हल्के हल्के रातरानी संग झूमें
श्याम निशा गलबहियां डाले अंतरिक्ष में घूमें
आओ प्रिय हममें तुम तुममें हम खो जाएं
वसुंधरा आसमान के कानों में कह चूमें!
लता प्रासर
श्याम निशा गलबहियां डाले अंतरिक्ष में घूमें
आओ प्रिय हममें तुम तुममें हम खो जाएं
वसुंधरा आसमान के कानों में कह चूमें!
लता प्रासर
जेठुआ सुप्रभात
मत कहना कि मैं मर गया हूं मैं बचा रहूंगा
हां बचा रहूंगा सिसकियों में सदियों तक
बचा रहूंगा गर्म धमनियों में पिढ़ियों तक
बचा रहूंगा भूखी गलियों से ड्योढ़ियों तक!
लता प्रासर
हां बचा रहूंगा सिसकियों में सदियों तक
बचा रहूंगा गर्म धमनियों में पिढ़ियों तक
बचा रहूंगा भूखी गलियों से ड्योढ़ियों तक!
लता प्रासर
मजदूर और मजदूरी को शत् शत् नमन
जलते हुए सपनों में उनको रौशन देखा है
उनकी रौशनी में खुद को जलते देखा है
गज़ब की संधि है सपने और रौशनी में
एक चिंगारी से महलों को जलते देखा है!
लता प्रासर
उनकी रौशनी में खुद को जलते देखा है
गज़ब की संधि है सपने और रौशनी में
एक चिंगारी से महलों को जलते देखा है!
लता प्रासर
भरणी नक्षत्र का स्वागत
नमस्कार
नोहर मोरे नाव खेवैया करे प्रेम तलैया पार
बाबरिया सुध-बुध खो बैठी करके खूब सिंगार
पुक्कस हास करे नहीं जाने कैसी लगन लगी
करत गोहार दिन रैन कटे टुटे न कर्म का तार!
लता प्रासर
बाबरिया सुध-बुध खो बैठी करके खूब सिंगार
पुक्कस हास करे नहीं जाने कैसी लगन लगी
करत गोहार दिन रैन कटे टुटे न कर्म का तार!
लता प्रासर
बदरायी सुबह का नमस्कार
कल से फिज़ा गुमसुम क्यों है
शायद कोई तहलका होनेवाला है
बादलों का साया है धरती पर
क्या कोई सूरज निकलने वाला है
हलचल सी मची है यहां वहां
भाग्य विधाता का भाग्य बदलने वाला है!
लता प्रासर
अलविदा उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र
नमस्कार
शायद कोई तहलका होनेवाला है
बादलों का साया है धरती पर
क्या कोई सूरज निकलने वाला है
हलचल सी मची है यहां वहां
भाग्य विधाता का भाग्य बदलने वाला है!
लता प्रासर
अलविदा उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र
नमस्कार
हार-जीत की होड़ लगी है गली गली ये हल्ला है
एक के पीछे अनगिनत कहते सबसे अच्छा लल्ला है
सोच समझकर चुन लो मुझको भाई बहना सब
सुख सुविधा सब मेरे होने से मेरी लाठी मेरा बल्ला है!
लता प्रासर
सोच समझकर चुन लो मुझको भाई बहना सब
सुख सुविधा सब मेरे होने से मेरी लाठी मेरा बल्ला है!
लता प्रासर
हस्त (हथिया) नक्षत्र का स्वागत
मन की उलझन किसे बताएं
अपना कौन है किसे जताएं
तूफानों से दिल डरता है
सब अपने हैं किसे सताएं!
लता प्रासर
अपना कौन है किसे जताएं
तूफानों से दिल डरता है
सब अपने हैं किसे सताएं!
लता प्रासर
हस्त नक्षत्र में सुबह का नमस्कार
दिल बेचैन हैं पर कहने को शब्द नहीं
लिखना है कुछ कलम चलती ही नहीं
कोलाहल है चारों ओर अंदर भी तुफान है
अपने हैं सभी यहां पर मोहब्बत ही नहीं!
लता प्रासर
लिखना है कुछ कलम चलती ही नहीं
कोलाहल है चारों ओर अंदर भी तुफान है
अपने हैं सभी यहां पर मोहब्बत ही नहीं!
लता प्रासर
सहमी हुई सुबह का सलाम
हैवानियत का तांडव देख इंसानियत घबरा रहा
स्त्री को मारकर दरिंदा कहकहा लगा रहा
सुनो कोई चीख सुनो सिसकियां आस-पास है
कौन है बचानेवाला क्यों नहीं कोई यहां बता रहा!
लता प्रासर
स्त्री को मारकर दरिंदा कहकहा लगा रहा
सुनो कोई चीख सुनो सिसकियां आस-पास है
कौन है बचानेवाला क्यों नहीं कोई यहां बता रहा!
लता प्रासर
आसिन मास का शीतल प्रणाम
समझ लो वक्त ने खंजर बना भेजा है तुझे
कह रही दादी और कौन सा मंज़र देखना है मुझे
बेटियों उठो जागो समझो अपने आप को
दरिंदों से हरहाल में निपटना है तुझे
समझ लो वक्त ने खंजर बना भेजा है तुझे!
लता प्रासर
कह रही दादी और कौन सा मंज़र देखना है मुझे
बेटियों उठो जागो समझो अपने आप को
दरिंदों से हरहाल में निपटना है तुझे
समझ लो वक्त ने खंजर बना भेजा है तुझे!
लता प्रासर
दिनभर की फुहार सपनों में बरस जाए
शुभरात्रि
हौले से सपनों में जरा तुम आ जाना
नैना जोगिन को प्यार से सहला जाना
अरमां दिल के सपनों में खिल खिल जाए
ऐसी दुआ ओ रब मेरे यहां सजा जाना!
नैना जोगिन को प्यार से सहला जाना
अरमां दिल के सपनों में खिल खिल जाए
ऐसी दुआ ओ रब मेरे यहां सजा जाना!
आसिन का मलमासी प्रणाम
मंहगाई की मार झेलती बुधिया गुमसुम बैठी है
ठंडा चुल्हा ठंडी आहें बच्चों संग वो भरती हैं
आग लगी है पेट के अंदर तन मन जलकर खाक हो रहा
आमदनी हो या न हो मालिक पर अपने मरती है
चिकनी-चुपड़ी भोजन वह साहब के आगे धरती है
बिना नुन के रोटी खाकर कभी जिरह नहीं करती है
मंहगाई की मार झेलती बुधिया गुमसुम बैठी है
ठंडा चुल्हा ठंडी आहें बच्चों संग वो भरती है!
ठंडा चुल्हा ठंडी आहें बच्चों संग वो भरती हैं
आग लगी है पेट के अंदर तन मन जलकर खाक हो रहा
आमदनी हो या न हो मालिक पर अपने मरती है
चिकनी-चुपड़ी भोजन वह साहब के आगे धरती है
बिना नुन के रोटी खाकर कभी जिरह नहीं करती है
मंहगाई की मार झेलती बुधिया गुमसुम बैठी है
ठंडा चुल्हा ठंडी आहें बच्चों संग वो भरती है!
लता प्रासर
निर्मला कुंज, रोड नंबर एक, अशोक नगर, कंकड़बाग, पटना-20, मो.7277965160
निर्मला कुंज, रोड नंबर एक, अशोक नगर, कंकड़बाग, पटना-20, मो.7277965160
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