Alone Shayari Love Shayari
ग़ज़ल
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मुहम्मद मुस्तफा ग़ज़ाली
Army shayari love shayari
Sad Shayri Image
हाल पूछते क्या हो मुझसे मेरे दिलबर का
मुनहरिफ रहूं कैसे मैं भला मुहब्बत से
है कुबूल जब मुझको हुक्म रब्बे अकबर का
उम्मती के दामन में हर खुशी सिमट आती
कहना मान जो लेते आखिरी पयम्बर का
मुफलिसों की जानिब तो देखता नहीं कोई
अब तो बोलबाला है हर तरफ तवंगर का
सामने खुद आएगा जो नसीब में होगा
खेल देखते रहिए आप भी मुकद्दर का
आज फिर तलातुम में फंस गई मेरी कश्ती
क्या हसीं नज़ारा है देखिए समंदर का
मौत जिंदगानी की एक हसीन मंज़िल है
जिंदगी हकीकत में फलसफा है दम भर का
यह बता रहुं आखिर कब तलक तज़बज़ुब में
क्यों सुना नहीं देता फैसला मुकद्दर का
रहम कर मेरे ऊपर कैद से रिहाई दे
फिर चमन में मेला है हर तरफ गुले तर का
जब जहान से उठठा दोनों हाथ खाली थे
एक दरसे इबरत है वाक्या सिकंदर का
भेजा करते हैं लानत सब यज़ीद के ऊपर
नाम अदब से लेते हैं लोग इब्ने-हैदर का
अब फरेब में तेरे मैं तो आ नहीं सकता
जाग उठा है इक इंसां आज मेरे अंदर का
अबरहा चला तो था " तू खुदा से लड़ने को
हाल हो गया कैसा तेरे भारी लश्कर का
दो जहां की दौलत से सरफराज़ हो जाऊं
सदक़ा चाहिए मौला मुझको आले सरवर का
ऐश पर न इतरा तू,हंस ना मेरी ग़ुरबत पर
ऊंच-नीच तो प्यारे खेल है मुकद्दर का
की नहीं तवज्जो कुछ मैंने उस की जानिब तो
मिल गया ग़ुरुर आखिर ख़ाक में सितमगर का
आशिकी तसव्वुर में वस्ले यार की ख्वाहिश
या कि ख्वाब है कोई दीदा ए कलंदर का
कारवां में शामिल हूं फिर भी खौफ है मुझको
लूट ले न रस्ते में ' क्या भरोसा रहबर का
शेर पर तवज्जो दें,शायरी गज़ब की है
फ़न तो देखिए साहब आज इक हुनरवर का
नाम है " ग़ज़ाली " और काम है ग़ज़ल गोई
आइए सुख़न सुनिए इस नए सुखनवर का
मुहम्मद मुस्तफा ग़ज़ाली,पटना
📞 9798993200 / 8409508700
फिर मिज़ाज बरहम है आज उस सितमगर का
मुनहरिफ रहूं कैसे मैं भला मुहब्बत से
है कुबूल जब मुझको हुक्म रब्बे अकबर का
उम्मती के दामन में हर खुशी सिमट आती
कहना मान जो लेते आखिरी पयम्बर का
मुफलिसों की जानिब तो देखता नहीं कोई
अब तो बोलबाला है हर तरफ तवंगर का
सामने खुद आएगा जो नसीब में होगा
खेल देखते रहिए आप भी मुकद्दर का
आज फिर तलातुम में फंस गई मेरी कश्ती
क्या हसीं नज़ारा है देखिए समंदर का
मौत जिंदगानी की एक हसीन मंज़िल है
जिंदगी हकीकत में फलसफा है दम भर का
यह बता रहुं आखिर कब तलक तज़बज़ुब में
क्यों सुना नहीं देता फैसला मुकद्दर का
रहम कर मेरे ऊपर कैद से रिहाई दे
फिर चमन में मेला है हर तरफ गुले तर का
जब जहान से उठठा दोनों हाथ खाली थे
एक दरसे इबरत है वाक्या सिकंदर का
भेजा करते हैं लानत सब यज़ीद के ऊपर
नाम अदब से लेते हैं लोग इब्ने-हैदर का
अब फरेब में तेरे मैं तो आ नहीं सकता
जाग उठा है इक इंसां आज मेरे अंदर का
अबरहा चला तो था " तू खुदा से लड़ने को
हाल हो गया कैसा तेरे भारी लश्कर का
दो जहां की दौलत से सरफराज़ हो जाऊं
सदक़ा चाहिए मौला मुझको आले सरवर का
ऐश पर न इतरा तू,हंस ना मेरी ग़ुरबत पर
ऊंच-नीच तो प्यारे खेल है मुकद्दर का
की नहीं तवज्जो कुछ मैंने उस की जानिब तो
मिल गया ग़ुरुर आखिर ख़ाक में सितमगर का
आशिकी तसव्वुर में वस्ले यार की ख्वाहिश
या कि ख्वाब है कोई दीदा ए कलंदर का
कारवां में शामिल हूं फिर भी खौफ है मुझको
लूट ले न रस्ते में ' क्या भरोसा रहबर का
शेर पर तवज्जो दें,शायरी गज़ब की है
फ़न तो देखिए साहब आज इक हुनरवर का
नाम है " ग़ज़ाली " और काम है ग़ज़ल गोई
आइए सुख़न सुनिए इस नए सुखनवर का
मुहम्मद मुस्तफा ग़ज़ाली,पटना
📞 9798993200 / 8409508700
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