भगवान को भी गाली
(भक्ति काव्य तरंग)
“जय जय श्री राम”
हैं मिथिलावासी जग में कितने भाग्यशाली?
दे सकते हैं भगवान जय राम को भी गाली।
धन्य धन्य मिथिला देश, धन्य धन्य मैथिल, मिथिलावासियों की तो किस्मत है निराली।
एक तरफ मज़ाक, दूसरी तरफ पूजा अर्चना,
दोनों के बीच मचलती है खुशबू मतवाली।
हैं मिथिलावासी जग में…………….
मैथिल लोगों की गलियों को प्रभु पसंद करते,
पी जाते समझकर, सुधा प्रेम रस की प्याली।
गालियां उनका मन मोह लेती, विवश कर देती,
देखने सुननेवालों को, बजानी ही पड़ती ताली।
किसी और के लिए सोचना भी संभव नहीं है,
जितनी देते गाली, मन की उतनी बढ़ती लाली।
ऐसा रिश्ता प्रभु से किसी और का नहीं जग में,
जो परोस सके भगवान को, गालियों की थाली।
हैं मिथिलावासी जग में……………
घर आने पर भी गाली देते और घर जाकर भी,
हर गाली बढ़ा देती है, इस जीवन की खुशहाली।
मिथिला में जन्म, कितने सौभाग्य की बात है?
बूटे बूटे को पता और जानती यह डाली डाली।
गाली के बदले गाली सुनने का मज़ा कुछ और,
लेनी हो या देनी, किसको बुरी लगती है गाली?
जमाना बदला, युग बदला, पर गाली नहीं बदली,
मिथिला और अवध, अबतक दोनों ने है संभाली।
हैं मिथिलावासी जग में………….
भगवान राम भी एकबार मुंह नहीं खोल पाते हैं,
हंसकर सुना करते ससुराल में, सभी से गाली।
खुद तो सुनते ही, मां बाप को भी सुनवाते हैं,
तभी तो बनी हुई है, दोनों तरफ आज हरियाली।
छू मंतर रहता अनुज लक्ष्मण जी का गुस्सा भी,
नाचती सुनयना की बिछिया, कौशल्या की बाली,
राजा जनक जी के बाग में शोभा बढ़ जाए और,
मिल जाए अगर, अवध नरेश दशरथ जैसा माली।
हैं मिथिलावासी जग में…….……
अवध के चारों राजकुमार, गाली सुनने को तैयार,
जो आवे यहां, जाए यहां से सुनकर चार गाली।
कोई जवाब नहीं मिथिलावासियों का, लाजवाब हैं,
खेत खलिहान और घर की राम करे रखवाली।
माता लक्ष्मी और माता सरस्वती दोनों साथ यहां,
रण संग्राम में साथ चला करती हैं माता काली।
भगवान की ससुराल मिथिला में, कैसी चिंता?
सभी चाहते खुश रहे सास ससुर और साला साली।
हैं मिथिलावासी जग में………..
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)
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