Ticker

6/recent/ticker-posts

विश्व शिक्षक दिवस पर कविता – Poem on World Teachers Day

विश्व शिक्षक दिवस पर कविता – Poem on World Teachers Day


आज विश्व शिक्षक दिवस की समस्त शिक्षक माताओं बहनों एवं बंधुओं को सपरिवार हार्दिक बधाई एवं बहुत बहुत शुभकामनाएं। विश्व शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में सादर एक रचना का प्रयास :

शिक्षक पद सर्वश्रेष्ठ जगत में, विश्व शिक्षक दिवस पर कविता


शिक्षक पद सर्वश्रेष्ठ जगत में,
शिक्षक का सर्वश्रेष्ठ होता मान।

शिक्षक ही है शिक्षा जगत का,
सर्वोच्च मिलता जिसे सम्मान।।

सच्चा शिक्षक है वही जगत में,
चरित्रवान शीलवान व गुणवान।

वाणी में हो जैसे मिला ये शहद,
सभ्यता निष्ठा जिसकी पहचान।।

स्व अंतर्मन ज्ञान ज्योति जगाता,
फिर करता ज्ञान ज्योति प्रदान।

जो होते स्व चरित्र के उज्ज्वल,
वही करते शिशु चरित्र निर्माण।।

वैसे ही शिक्षक होते हैं विद्यालय,
घर गाॅंव समाज राष्ट्र के आदर्श।

हर बाधाओं से संघर्ष हैं करते,
किंतु यथोचित शिक्षा देते सहर्ष।।

मान अपमान की चिंता न करते,
वितरित करते हैं यथोचित ज्ञान।

ऐसे शिक्षक सदा सम्मानित होते,
पूर्ण करते सदा राष्ट्र के अरमान।।

ऐसे शिक्षक को सादर नमन मेरा,
राष्ट्र का बढ़ाते हैं विशेष पहचान।

गर्व करता रहा है सदा यह भारत,
गर्व करता रहेगा सदा हिन्दुस्तान।।

पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।

शिक्षक दिवस पर कविता

विषय : चित्रानुसार
शीर्षक : शिक्षक दिवस
दिनांक : 5 अक्टूबर, 2023
दिवा : गुरुवार

आज चल रहे यत्र तत्र विद्यालय,
आज से पहले चलते थे गुरुकुल।

आज दी जाती विद्यालयी शिक्षा,
पहले था सभ्यता संस्कृति मूल।।

आज चलते शिक्षक छात्र रिश्ते,
पहले था गुरु शिष्य यह प्रधान।

गुरु होते थे स्वयं बहुत ही पावन,
पावन दीक्षा ही करते थे प्रदान।।

गुरुकुल से भी पहले थे आश्रम,
तब गुरु होते भगवत के समान।

माता पिता सम स्नेह थे बरसाते,
शिष्यों के वे पूर्ण करते अरमान।।

आश्रम के तब कठिन थे नियम,
मातापिता करते थे पूर्ण विश्वास।

बचपन में ही बच्चों को थे सौंपते,
लेकर गुरु से वे पूरी पूरी आस।।

गुरु भी सहर्ष शिष्य स्वीकारते,
माता पिता भेजते कर आश्वस्त।

मातापिता को था पूर्ण भरोसा,
वापस लौटते थे होकर विश्वस्त।।

भिक्षाटन कर भोजन था होता,
गुरु आदेश होता तब शिरोधार्य।

गुरु दीक्षा तन-मन से पूरी करते,
फिर लगते अपने अपने कार्य।।

आश्रम में संग सब दीक्षा लेते,
भोजन करते मिल संग में साथ।

हर कार्यों में सब सहयोगी होते,
हर कार्य समाप्त थे हाथों हाथ।।

जो शिष्य जब भी युवा थे होते,
घर पहुॅंचाते गुरु उसे लेकर संग।

घर पर सबके थे परिचय कराते,
और समझाते तुम इनके अंग।।

पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।

और पढ़ें 👇

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ