आत्मा : हिंदी कविता
विषय : आत्मा
जिसे शस्त्र काट सकता नहीं,
जिसे न अस्त्र सकता है बेध।
जहां पर स्थित है वह सुरक्षित,
जहां किसी का प्रवेश निषेध।।
दुश्मन भी छिन सकता नहीं,
चुरा सकता नहीं कभी है चोर।
जहां बस पाता है अंधेरा नहीं,
इतना रहता है ये वहां अंजोर।।
मर सकता नहीं कभी है वह,
नहीं कभी वह मिट सकता है।
सदा रहा है वह अजर अमर,
वहां कोई कैसे टिक सकता है।।
जिसकी तलाश में हैं भटकते,
मंदिर मस्जिद ढूंढ़े परमात्मा हैं।
चल पड़े हैं हम परमात्मा ढूंढ़ने,
ढूंढ़ नहीं पाते हम ये आत्मा हैं।।
यत्र तत्र ढूंढ़ रहे हैं उनको हम,
ढूंढ़ रहे हम ये क्षीर समुन्दर हैं।
उस समुद्र को ढूंढ़ नहीं पाते हम,
बहता जो हमारे ही ये अंदर है।।
अपनी ही आत्मा ढूंढ़ नहीं पाते,
परमात्मा को हम ढूंढ़ने चले हैं।
परमात्मा हमसे हैं ये दूर नहीं,
परमात्मा तो आत्मा के तले हैं।।
परमात्मा का जड़ है ये आत्मा,
आत्मा ढूंढ़ दिव्यात्मा मिलेगा।
दिव्यात्मा ढूंढ़ लिया जिसदिन,
वहीं पे तुम्हें परमात्मा मिलेगा।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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