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नासबियों की कमर पर फ़िर से दुर्रा ए अली (अलेहिस सलाम) हुसैन ओ मिन्नी व अना मिनल हुसैन! लब्बैक या हुसैन!

नासबियों की कमर पर फ़िर से दुर्रा ए अली (अलेहिस सलाम)

हुसैन ओ मिन्नी व अना मिनल हुसैन!

लब्बैक या हुसैन!

मुहर्रम उल हराम का चांद दिखने वाला है और इसके साथ हिजरी सन् का साल शुरू होगा जिसमें कुछ लोग अज्ञानतावश और कुछ जान बूझ कर इस्लामी नए साल की मुबारकबाद दे रहे होंगे। इसलिये मेरी आप सभी से यह गुज़ारिश है की अल्लाह के वासते ना तो मुझे और ना ही किसी और को इस्लामी नए साल की मुबारकबाद दें और जो संदेश मैं आपको भेज रहा हूँ उसको शुरू से आख़िर तक पढ़ें।

यह लेख मैंने पिछले साल लिखा था। मगर आज आप लोगों से फ़िर एक बार इसको साझा कर रहा हूँ, अक़ल पर पड़े पत्थरों को हटाओ मेरे भाईयों!!

हुसैन ओ मिन्नी व अना मिनल हुसैन!  लब्बैक या हुसैन!


नोट: कृपया इस लेख को पूरा पढ़े

इस्लामी नया साल और मुहर्रम उल हराम।


पहला:
वैसे तो दीनी बहस-मुबाहिसे में पड़ना मेरा काम नहीं पर उम्मत ए मुस्लिमा मे नए राइज होते फितने से आगाह करना मेरा हक़ भी है और फर्ज़ भी, तो लोगो आज मैं आपसे यह अर्ज़ करने को यहाँ क़लम कुशाही कर रहा हूँ की हर साल की तरह इस साल भी हमारे बीच कुछ लोगो ने इस्लामी नए साल की मुबारकबाद बड़े फख़्र के साथ पेश की और अगर उनको ऐसा ना करने को कहा तो बहस भी की; मेरा यहाँ ऐसे लोगो से एक सवाल है? की आप किस बात की मुबारकबाद देते फ़िर रहे हैं? क्या आपको नहीं मालूम की यकुम मुहर्रम उल हराम अमीर उल मोमिनीन हज़रत उमर रज़ी अल्लाहो अनहो की शहादत का दिन है? क्या आप लोग अमीर उल मोमिनीन की शहादत की मुबारकबाद देते फ़िर रहे हैं? क्या आप अबू लूलू फिरोज़ की औलाद में से हैं के जिसने य के बाद दीगरे अमीर उल मोमिनीन पर ख़न्जर से 6 क़ातिलाना वार किये थे जो की एक आग का पुजारी था।

तो वाक़्या कुछ यूँ था कि एक बार अमीर उल मोमिनीन हज़रत उमर रज़ी अल्लाह अनहो के पास एक शक़्स आया और अर्ज़ करने लगा की मैं एक ग़ुलाम हूँ और मेरा मालिक मुझसे महसूल बहुत वसूलता है अमीर उल मोमिनीन ने दरयाफत किया की तुम क्या हुनर जानते हो तो अबू लूलू फिरोज़ ने अपने तमाम हुनर हज़रत उमर रज़ी अल्लाह अनहो को बताए तो हज़रत ने इरशाद फरमाया की तुमसे वसूले जाने वाला महसूल मुनासिब है और जब तुम अगली बार मेरे पास आओ तो मुझे एक हवा से चलने वाली चक्की बना कर देना जिस पर उस आग के पुजारी ने कहा की मैं आपको एक ऐसी चक्की बना कर दूँगा की दुनियाँ उसे याद रखेगी और गुस्से में अपने दाँत पीसता हुआ वापस चला गया अगले दिन 26 ज़िलहिज सन् 23 हिजरी को अबू लूलू फिरोज़ फज्र की नमाज़ में नमाज़ियों के बीज छुप कर खड़ा हो गया और पहली रकत के बाद हज़रत उमर रज़ी अल्लाह अनहो पर हमलावर हुआ जिसमें हज़रत के जिसमें मुबारक पर कई जख़म आए और पेट पर हुए वार से मेदा कट गया और आप चार दिन की तकलीफ, भूख और प्यास के बाद पहली मुहर्रम उल हराम को शहीद हो गए, इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलैही राहजिऊन।


दूसरा:
इसके अलावा ये पहली मुहर्रम वो दिन भी है कि जब रसूल अल्लाह स0अ0व0 को रातो-रात अपना पसंदीदा शहर मक्का ए मुअज़्ज़मा छोड़ कर मदीने को हिजरत करनी पड़ी थी क्योंकि मक्के में रहने वाले काफिरों से आपकी जान को खतरा था, हज़रत अबू बक्र रज़ी अल्लाह अनहो से रिवायत है की जब रसूल अल्लाह स0अ0व0 मक्के की हद से बहर निकले तो आप बारहाँ मक्के की तरफ पलट कर देखते और रंज करते और आपकी चशमे मुबारक से आँसू जारी होते। तो मेरे भाईयों मुझे बताओ की किस ख़ुशी की वजह से आप इस्लामी नए साल की मुबारकबाद देते फ़िर रहे हैं क्या आपको इस बात की ख़ुशी है की इस दिन रसूल अल्लाह स0अ0व0 को कुफ्फार ए मक्का ने मक्के से बहर जाने पर मजबूर कर दिया था? क्या इस बात की मुबारकबाद दे रहे हो की रसूल अल्लाह स0अ0व0 को कुफ्फार ए मक्का ने इतना सताया इतनी तकलीफ पोहचाई के आपको मजबूर हो कर मक्का छोड़ना पड़ा?


तीसरा:
यह वो महीना है के जिसमे नवासा ए रसूल अल्लाह स0अ0व0 और उनके घर के हर बच्चे-नौजवान को मुसलमानों ने ही 3 दीन भूखा-प्यासा रख कर करबला के तपते मैदान में शहीद कर दिया था, उन मुसलमानों ने जो उपर से तो मुसलमान दिखाई देते थे पर थे पक्के मुनाफिक़ जो आल ए अबु सुफियान थे, जिनका मक़सद था दुनियाँ हासिल करना और दीन में दुनियाँवी शर को शामिल करना।

ये वही इमाम हुसैन अ0स0 थे के जिनके लिए नबी स0अ0व0 ने फरमाया हुसैन मुझसे है और मैं हुसैन से, ईलाही मैं हुसैन को दोस्त रखता हूँ तू भी इसे दोस्त रख, और जो हुसैन से मोहब्बत करे तू उस्से मोहब्बत कर, जो हुसैन से दुशमनी करें तू उस्से दुशमनी रख।

ये वही हुसैन हैं के जिनको रसूल अल्लाह स0अ0व0 ने सय्यदतो शबाबे अहले जन्नाह कहा, और फरमाया की मेरे अहले बैत तुम लोगो मे कशती ए नूह की तरह है जो इसमें सवार हुआ निजात पा गया जो पीछे रह गया हलाक हो गया। अब आप लोग ही खुद अपना फैसला करलें। लकुम दीनाकुम वलीयादीन।

मेरे इन सवालात का अगर कोई दीनी भाई जवाब देदे तो मैं भी नए साल की आमद का जश्न मनाऊँ।
आभार:
कशिश बारिश ग्लोबल न्यूज़

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