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अज़ीम शायर-ए-इस्लाम, हज़रत-ए-रामदास प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी का तर-व-ताज़ा, जदीद-व-मुन्फ़रिद, उम्दा-व-तुर्फ़ा ह़म्दिया, नात़ियाऔर ग़ज़लिया कलाम

अज़ीम शायर-ए-इस्लाम, हज़रत-ए-रामदास प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी का तर-व-ताज़ा, जदीद-व-मुन्फ़रिद, उम्दा-व-तुर्फ़ा ह़म्दिया, नात़ियाऔर ग़ज़लिया कलाम


रामदास प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी


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वहाँ, तू ख़ुद को ले जा, ज़िन्दगी में!
सुकून-ए-दिल है दिलबर/तैबा की गली में!!

जो ह़ासिल हो गई, इश्क-ए-हरि/ इश्क-ए-नबी में!
कहाँ? वो शै, दो आलम की ख़ुशी में!!

कभी, ऐ काश!, अपनी ज़िन्दगी में!
पहुँच जाऊँ, मदीना/ मदीने/ मक्का/ मक्के की गली में!!

ख़ुदा की, और मह़बूब-ए-ख़ुदा की!!
नज़र आई मुहब्बत/ मह़ब्बत, आदमी में!!

दिलाएगा मह़ल्लात-ए-बहिश्ती!
बहेगा ख़ूँ/ ख़ून अगर इश्क-ए-नबी/ फ़र्ज़-ए-नबी में!!

करें हम जा के काबा/ काबे की ज़ियारत/ ज़्यारत!
ख़ुदाया!, दिन वो, आए, ज़िन्दगी में!!

रुख़-ए-मह़बूब का दीदार हो, और!
निकल जाये मेरा दम, उस ख़ुशी में!!

न, मैं सोता रहूँ, बिस्तर पे, शब भर!
मैं जागूँ रात भर याद-ए-हरि/ याद-ए-नबी में!!

हरि/ नबी है औज पर, ऐ फ़ौज-ए-यूरोप/ फ़ौज-ए-दुन्या/ लश्कर-ए-दह्र!
रहेगा रोब/ रहेगी धूम उस की हर सदी में!!

अकेले में सताता है मुझे, तू!?
ख़ुदा मौजूद तो है, पास ही में!!

" सरापा नूर " से दिल लग गया है!!
सुकूँ मिलता नहीं है तीरगी में!!

तड़पता रह न जाऊँ, ज़िन्दगी भर!!
पहुँच जाऊँ " मदीना "/ हिमालय/मथूरा/ उडीसा/ ओडीशा, ज़िन्दगी में!!

हरि/ नबी जी!, ये हमारी ज़िन्दगी भी!
गुज़रती जा रही है, बे-कली( बेचैनी) में!?

किसी मन्ज़िल पे, मैं रुकता नहीं हूँ!!
हज़ारों मोड़ हैं इस ज़िन्दगी में/ हज़ारों मन्ज़िलें हैं ज़िन्दगी में!?

छुपा के रख लिए थे सारे आँसू!!
छलक के रह गये, लेकिन, हँसी में!!

यहाँ से और जायें हम कहीँ ना!!
रहें हम बैठे दिलबर/ तैबा की गली में!!

कृष्णा/ मुह़म्मद का दिवाना चल पङा ख़ुल्द/ स्वर्ग!!
अजब इक धुन थी/ है उस की बेख़ुदी में!!

अकेले में सताते हैं मुझे, सब/ लोग!?
हरि/ नबी मौजूद तो हैं पास ही में!!

दिलाएगा ही ऐवान-ए-बहिश्ती!!
बहेगा ख़ूँ/ ख़ून अगर इश्क-ए-नबी/ फ़र्ज़-ए-नबी/ हरि में!!

ब-फ़ज़्ल-ए-रब/ ह़क़, लिखी/ कही है ह़म्द, मैं ने!!
मज़ा आया है मुझ को बन्दगी में!!

लिखूँ, ऐ दोस्त/ यार/ राम!, " नात-ए-मुस्त़फ़ा ", मैं!!
दो आलम की ख़ुशी हो, शायरी में!!

" मुहब्बत ही मुह़ब्बत/ मुहम्मद-
ही मुहम्मद " बोल कर, आप/ राम/ दास!!
फिरा कीजे, मुहब्बत/ मुहम्मद/ मदीना/ मथूरा की गली में!!
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इस त़वील मन्ज़ूम तख़्लीक़ के दीगर शेर-व-सुख़न आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!
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डाक्टर रामदास प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी, द्वारा डॉक्टर जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी बिल्डिंग्, राँची हिल साईड, इमामबाड़ा, दिलीप कुमार- सायरा बानो मन्ज़िल रोड, गाड़ी-ख़ाना, राँची, झारखण्ड, इन्डिया!

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