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शायर-ए-ह़क़-व-सदाक़त, ह़ज़रत-ए-रामदास प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी की-जदीद-व-मुन्फ़रिद, उम्दा-व-तुर्फ़ा ग़ज़ल

अज़ीम शायर-ए-ह़क़-व-सदाक़त, ह़ज़रत-ए-रामदास प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी की-जदीद-व-मुन्फ़रिद, उम्दा-व-तुर्फ़ा ग़ज़ल


रामदास प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी,

जदीद ग़ज़ल | हसीन शायरी हसीना की खिदमत में

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मैं, ह़क़ाइक़/ ह़क़ीक़त से, नज़रें मिलाता रहूँ!!
" तल्ख़-शेरों/ दोहों/ नज़्मों/ ग़ज़लों " की मह़्फ़िल सजाता रहूँ!!

मैं, तेरे " रूख़ " से " घूँघट " उठाता रहूँ!!
बस!, " फ़रेब-ए-नज़र " रोज़ खाता रहूँ!!

रात-दिन, मैं, पतंगें उड़ाता रहूँ!!
" नभ " के सब पंछियों को सताता रहूँ!!

रोज़-व-शब, ग़ुन्चा-व-गुल खिलाता रहूँ!!
दश्त-व-सह़रा को गुल्शन बनाता रहूँ!!

बाम-व-दर पर " तिरंगा " लगाता रहूँ!!
" हिन्द " की शान, हर पल बढाता रहूँ!!

"राज़ " सारे, तुम्हें अब बताता रहूँ!!
अपने हम-राज़ तुम को बनाता रहूँ!!

मैं, तेरे " मुख " से " घूँघट " उठाता रहूँ!!
" मस्त-सपनों/ ख़्वाबों की मह़्फ़िल सजाता रहूँ!!

मैं, तेरा, ख़ुद को, "आशिक़ " बनाता रहूँ!!
तेरी ख़ातिर, मैं, हर ग़म/ दुख उठाता रहूँ!!

" हम-नवा " हर बशर को बनाता रहूँ!!
दिल में, हर शख़्स के, मैं, समाता रहूँ!!

हर जगह, मैं, " तिरंगा " लगाता रहूँ!!
शान, भारत की, हर पल बढाता रहूँ!!

फिर, तेरे " रूख़ / मुख " से " घूँघट " उठाता रहूँ!!
मैं, " सुकून-ए-नज़र " रोज़ पाता रहूँ!!

फिर, तेरे इश्क़/ प्यार/प्रेम में गीत गाता रहूँ!!
मैं, " सुकून-ए-जिगर " रोज़ पाता रहूँ!!

भेद/ राज़ कोई, न हरगिज़, छुपा कर रखूँ!!
भेद/ राज़ अपने, तुम्हें, मैं बताता रहूँ!!

तेरे ही वास्ते है, " जवानी " मेरी!!
तुझ पे, अपनी जवानी लुटाता रहूँ!!

मुस्कुराती रहे सुन के तू, " दिलरुबा "
मैं, " ग़ज़ल " देख कर तुझ को, गाता रहूँ!!

इश्क़-व-उल्फ़त से बाज़ आऊँ हरगिज़ न अब!!
मैं, "रहे-इश्क़" में दिल गँवाता रहूँ!!

मैं रहूँ, तेरी नज़रों में आठों पहर!!
और तेरे दिल में हर पल समाता रहूँ!!

यूँ न ग़ाफ़िल रहूँ, तेरी सोह़बत से अब!!
मैं, तेरे पास हर लम्हा आता रहूँ!!

हुस्न तेरा, क़यामत है, ऐ नाज़नीँ/ दिलरुबा!!
मैं, तेरे " नाज़" हरपल/हरदम उठाता रहूँ!!

दोस्तो!, इस जहाँ का अन्धेरा मिटे!!
" आफ़ताब-ए-मुह़ब्बत " उगाता रहूँ!!

तुम, " ह़क़ाइक़/ ह़क़ीक़त " से नज़रें चुराते रहो!?
मैं, "ह़क़ाइक़/ ह़क़ीक़त " से नज़रें मिलाता रहूँ!?

मेरा दम्साज़/हम्राज़ बन जाये हर आदमी!!
हम्नवा एक इक/ हर बशर को बनाता रहूँ!!

अब मैं तो उन से करता रहूँ गुफ़्तगू!!
यूँ, तसव्वुर/ तकल्लुम की मह़्फ़िल सजाता रहूँ!!

क्या?" जुदाई " की घड़ियाँ नहीं बीतेंगी!!

आप के हिज्र में, " दिल " जलाता रहूँ!?!
यारो!, "आवारगी " अच्छी होती नहीँ!!

ख़ुद को आवारगी से बचाता रहूँ!!
दोस्तो!, "मौत की बात "क्यों? मैं करूँ!!

" ज़िन्दगी " के मधुर गीत गाता रहूँ!!
यूँ, किसी से रहूँ, हो के मरवूब क्यों!?!

मैं, हर इक शै से नज़रें मिलाता रहूँ!!
इक जवाँ, शोख़, दिलकश हसीना पे आज!!

मैं तो/भी " अपनी जवानी " लुटाता रहूँ!!
कूचा, बस्ती, नगर, गाँव- देहात को!!
उन्नति और तरक़्क़ी दिलाता रहूँ!!

तालिबान-ए-उलूम-व-हुनर को मैं भी!!
रोज़, " मश्क़-व-रियाज़त " कराता रहूँ!!
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इस त़वील ग़ज़ल के दीगर शेर-व-सुख़न आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!!
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रामदास प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी,
डाक्टर जावेद अशरफ़ क़ैस फ़ैज़ अकबराबादी बिल्डिंग्, डॉक्टर ख़दीजा नरसिंग, राँची हिल साईड, इमामबाड़ा रोड, राँची, झारखण्ड, इन्डिया!

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