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सुकून पा लेती हूं तब मन के स्लोगन को बांधती हूं : सुकून पर कविता

Poem on Sukoon in Hindi | Sukun Par Kavita

सुकून
जीवन में उतरते चढ़ते
भावों के आडम्बरोंसे घिरे
शब्दों को सुनहरी माला में
पिरो कर मैं कविता लिखती
थोड़ा सा सुकून पा लेती हूं तब
अकेलेपन की खाली किताबों में
अनसुलझी कहानियों के बीच
शब्दों के जाल से झंकृत
सृजन करती मैं कविता लिखती
थोड़ा सा सुकून पा लेती हूं तब
मन के स्लोगन को बांधती हूं,
प्रेम से भरे संदेशों को उतारती हूं
शब्दों की पहेलियों में सुलझा कर
गीत गुनगुनाती मैं कविता लिखती
थोड़ा सा सुकून पा लेती हूं तब।
(स्वरचित)
_____डॉ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार

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