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शिक्षिका पर कविता : कोमल कृश तन पैबंद लगी साड़ी Shikshika Par Kavita

शिक्षिका पर कविता : कोमल कृश तन पैबंद लगी साड़ी Shikshika Par Kavita

Shikshika Par Kavita

शिक्षिका पर कविता : कोमल कृश तन पैबंद लगी साड़ी

फटी चप्पल
शिक्षिका
कोमल कृश तन
पैबंद लगी साड़ी--
फटी चप्पल,
हाथ में छतरी बटुआ
दौड़ रही,वह बेचारी

उलट पलट खाना कर,
बालक को रोता छोड़,
लाड़लों को चुप करा आती।
मुख मुरझाया,
स्वेद की पड़ गई बूंदें-
नीरस जीवन की प्यास
बुझा न पायीं अलकें।
दृग भी अब पत्थर होगये
गई जब कितनी जानें,
ममता बुझ गई,
हो गई वह,संज्ञा हीन

शोणित होती ये ललनायें,
भारत मां तेरी ही संतानें,
लूट रहे तेरे चंद फ़रिश्ते
इन कोमलताओं की जानें।
तुम किधर क्यों करें दृष्टि---
रूठ गई क्या महारानी।
उद्धार करो मां इनका भी
यह असहाय जीवनन्तर की।
___डा० सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार

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