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माँ पर कविता : मां शब्द में है गौरव की गरिमा

माँ पर कविता : मां शब्द में है गौरव की गरिमा

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Maa Par Kavita : Maa Shabd Hai Gaurav Garima

मां
मां शब्द में है गौरव की गरिमा
करुणा, ममता की है मूरत
सृष्टि की निर्माता तुम ही हो
वीर प्रसूता, जग पालक तू ही,
स्त्रीत्व की संपूर्णता तुम में,
नारीत्व के गुण से संभरित,
मां तुम बस मां ही रहना,
मां शब्द में ही गौरव की गरिमा

मत विकृत रूप होने देना,
ध्वनियों के स्पंदन की आहट से
अपना रूप न बिगड़ने देना,
तुम ज्ञान की प्रथम पाठशाला,
संस्कारों की हो सदा विरासत,
प्रेम की साक्षात देवी स्वरूपा,
सहनशीलता की धात्री हो,
मां तुम बस मां ही रहना,
मां शब्द में है गौरव की गरिमा।

परिवर्तनशाली युग में, हे माते!
आकृति तुम्हारी बदली है,
अति शब्दों की माला से गढ़ दी
प्रेम को नया परिधान पहनाया है,
मां देखो सब बिखर रहा है,
पीड़ित हो रहा है सारा संसार,
मां तुम बस मां ही रहना,
मां शब्द में है गौरव की गरिमा।

____डा०सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार

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