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वतन से बड़ा महबूब कोई हो नहीं सकता : वतन से मोहब्बत शायरी Watan Se Mohabbat Shayari

वतन से बड़ा महबूब कोई हो नहीं सकता : वतन से मोहब्बत शायरी Watan Se Mohabbat Shayari

वतन से मोहब्बत
मुहब्बत में मुक्कमल फर्ज होता है
इंसान पर इंसानियत का कर्ज होता है

नहीं होता मुहब्बत में सौदा जमीरों का
क्या मुहब्बत भी कभी खुदगर्ज होता है

वतन से बड़ा महबूब कोई हो नहीं सकता
गैरत ऐसे आशिक की जां से मर्ज होता है

जमीं से इश्क होना इक अलग शैय है
हर किसी शख्स का यह फर्ज होता है

'नादान' हैं वो जो वतन से घात करते हैं
वतन ही बंदगी दुजा खुदा का अर्ज होता है
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उदय शंकर चौधरी नादान
कोलहंटा पटोरी दरभंगा
9934775009

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