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आसमा से गिरी जब वह काली घटा : प्यारे मीठे हिंदी गीत Sweet Memories Hindi Songs

आसमा से गिरी जब वह काली घटा : प्यारे मीठे हिंदी गीत Sweet Memories Hindi Songs

गीत..
आसमा से गिरी जब वह काली घटा
गुनगुनाने लगी देख मौसम हवा

यूं ही रिमझिम फुहारे बरसने लगी
धूप फागुन की जो लह लहा ने लगी
आसमान से गिरी जब वो काली घटा

जब कड़कने लगी बिजलियाँ उधर
जब सवरने लगे रंग यू प्यार के
पग में पायल पड़ी झुनझुनाने लगी।
याद बचपन की फिर मुझको आने लगी।

झांकती फिर रही है वह पागल हवा
थपकियाँ दे के मुझको सुलाने लगी
याद बचपन की फीर मुझको आने लगी
आसमान से गिरी जब वह काली घटा।

किरणें दामन बिछाती चली आ रही
नभ में विजुरी भी झुला झुलाने लगी।

खुश्क मौसम में दामन भिगाती हुई।
ये घटाऐं सभी गुनगुनाने लगी।
आशा श्रीवास्तव
भोपाल

हिंदी गीत : चली बदरिया पिया से मिलने घूंघट में शर्माए

बदरिया..।
चली बदरिया पिया से मिलने
घूंघट में शर्माए
झमाझम बारिश हो रही है
झमाझम बारिश हो रही है
पांव में पायल आंख में कजरा
पतली कमर बल खावे
झमाझम बारिश हो रही
झमाझम बारिश हो रही
सोंधी सोंधी गंध महकती
धिरे धिरे आए
काली घटाएं पल पल याद दिलाएं
झमाझम बारिश हो रही
झुके झुके कजरारे बदरा
बहने लगा आंख का कजरा
बुंदिया आग लगाए
झमाझम बारिश हो रही
इंद्रधनुष संग मेघ गरजते
पूरब पूरब पश्चिम लोग तरसते
भूल भई ऐसी का हमसे
नैना नीर बहाए
झमाझम बारिश हो रही
झमाझम बारिश हो रही
झुलस गया मन अवसादो में
सावन की बरसातों में
प्रीत निगोड़ी दरस को तरसे
पवन झूम लहराए
झमाझम बारिश हो रही।
बैरन बिजुरी दम दम दमके
भरे भरे भरे ड्रग मोती चमके
पवन झकोरा आग लगाए
बैरन नींद ना आए
झमाझम बारिश हो रही
झमाझम बारिश हो रही
धन्यवाद
आशा श्रीवास्तव भोपाल

मीठे-मीठे हिंदी गीत : तपती हुई धरा पर बुदियों ने डेरा डाला

तपती हुई धरा पर
बुदियों ने डेरा डाला
पागल हो गई नदी बाबरी
कैसा भेष बनाया
काली घटा ने शोर मचाकर
पहले से था चेताया
संभल जाओ ओ जग वालो
पर्वत से बादल टकराया
मेघ हुए तूफानी जबसे
रूद्र रूप अपनाया

उठा जलजला नदी में देखो
लहरों को घायल कर डाला

अंबर से धरती तक केवल
पानी पानी लहराया
शिव शंकर का खुला नेत्र जब
जल थल को है भरमाया

तपती हुई धरा पर
बुंदियों ने डेरा डाला।
पर्वत तोड़ शिलायें गिर गई
कैसा अद्भुत रूप बनाया
हरे-भरे सब जंगल उजड़े
वन पर्वत को ठुकराया
नदियां पागल हो गई जब से
बचा ना कोई घर द्वारा
बगिया मेरी सुनी हो गई
फूल पेड़ पर मुरझाया
पत्ते हवा में ऐसे उड़ गए
जैसे पंथी की छाया
बिखर गए घर द्वार सभी के
बचा न कोई रखवाला
पागल नदी दीवानी हो गई
राह बदल बनी ज्वाला
लील गई अपने जीवन के
बहा ले गई जलधारा
सिमट गए सब कोट कंगूरे
महल अटारी मधुशाला

पागल हो गई नदी सुहानी
नदी सुहानी बहती थी अमृतधारा
तपती हुई धरा पर
जब से बुंदियों ने डेरा डाला।
पागल हो गई नदी बावरी
कैसा भेष बनाया।
आशा श्री वास्तव भोपाल

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