बहादुर शाह जफर की गजल-Bahadur Shah Jafar Shayari
Lagta Nahin Hai Dil Mera ujde Dayar mein-Bahadur Shah Jafar
लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में
लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में
किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में
काँटों को मत निकाल चमन से ओ बाग़बाँ
ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में
बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला
क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में
कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
पहली मोहब्बत की शायरी Bahadur Shah Zafar shayari
हम ये तो नहीं कहते कि ग़म कह नहीं सकते।
हम ये तो नहीं कहते कि ग़म कह नहीं सकते।
हम ये तो नहीं कहते कि ग़म कह नहीं सकते।
पर जो सबब-ए-ग़म है वो हम कह नहीं सकते।
हम देखते हैं तुम में ख़ुदा जाने बुतो क्या,
इस भेद को अल्लाह की क़सम कह नहीं सकते।
रुस्वा-ए-जहाँ करता है रो रो के हमें तू,
हम तुझे कुछ ऐ दीदा-ए-नम कह नहीं सकते।
क्या पूछता है हम से तू ऐ शोख़ सितमगर,
जो तू ने किए हम पे सितम कह नहीं सकते।
है सब्र जिन्हें तल्ख़-कलामी को तुम्हारी,
शर्बत ही बताते हैं सम कह नहीं सकते।
जब कहते हैं कुछ बात रुकावट की तेरे हम,
रुक जाता है ये सीने में दम कह नहीं सकते।
अल्लाह रे तेरा रोब कि अहवाल-ए-दिल अपना,
दे देते हैं हम कर के रक़म कह नहीं सकते।
तूबा-ए-बहिश्ती है तुम्हारा क़द-ए-राना,
हम क्यूँकर कहें सर्व-ए-इरम कह नहीं सकते।
जो हम पे शब-ए-हिज्र में उस माह-ए-लक़ा के,
गुज़रे हैं 'ज़फ़र' रंज ओ अलम कह नहीं सकते।
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