शिक्षा में भ्रष्टाचार पर कविता
शिक्षा के मंदिर को व्यापार का केंद्र बना डाला।
सरस्वती के मंदिर में लक्ष्मी का है बोलबाला।
संस्कार तो बस अब किताबों में ही है मिलते ।
बाकि तो सब धन के चक्कर में हैं लगे रहते ।।
किताबी ज्ञान तक सिमटा है हर कोई यहां।
व्यावहारिक ज्ञान का उपहास बनाया जाता है।।
गुरुओं को चापलुसी,चमचागिरी से फुर्सत नहीं।
बच्चों को राजनिति करने से फुर्सत नहीं।
आरोप प्रत्यारोप में हर दिन गुजर जाता है।
बच्चा शिक्षक पर और शिक्षक बच्चे पर लगाता है।
मां बाप बच्चों का दुखड़ा विद्यालय में सुनाते हैं।
विद्यालय वो दुखड़ा शिक्षकों पर डाल देते हैं।
हर कोई बस धन कमाने में लगा है।
बच्चों पर भला कौन ध्यान देता है।
यदि कोई घटना घटित हो जाए।
तो सौभाग्य का श्रेय स्वयं पर और
दुर्भाग्य किसी और के सर मढ़ देता है।
इस तरह विद्यालय राजनिति की पाठशाला है।
यहां पर राजनितिज्ञो का बोलबाला है।
हाल ये है अब विद्यालयों का यहां।
कि डॉक्टर,इंजिनियर की जगह नेता और
सज्जनों के स्थान पर गुंडे बाहर निकलते हैं।।
समाप्त
हिमांशु पाठक
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